फ़ोन पर सुधा ने तन्वी से बात की और बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गई. तन्वी सुधा की छोटी बहन है. उस ने फ़ोन पर सुधा से कहा कि वह कुछ दिनों के लिए उस के घर आ रही है.
उस का आना सुधा को जरा भी पसंद नहीं आ रहा था. इसी फ्रस्ट्रेशन में वह सामान उठाउठा कर इधरउधर पटक रही थी.
उस को जब भी गुस्सा आता है, वह डस्टिंग करते समय इतनी जोरजोर से फटका मारती है कि पड़ोस के लोगों के घरों तक आवाज जाती है. फिर मोटा डंडा लाती है और गद्दों को पीटना शुरू करती है यानी की धूल झाड़ती है.
उस की बिल्डिंग के लोग इस का बहुत मजाक बनाते हैं. आंटी हमेशा कहती हैं, इतना जोर से गद्दों की धूल तो गद्दे बनाने वाले, रुई पिजने वाले भी नहीं झाड़ते. इस का तो बहुत नाटक है बाबा. और इसीलिए सुधा का नाम फटका वाली बाई रख दिया है बिल्डिंग के लोगों ने.
वह यह सब कर रही थी कि उस के दोनों बच्चे कमरे में आए और पूछने लगे, ‘किस का फ़ोन था, मम्मी?’
‘तुम्हारी तन्वी मासी का,’ सुधा ने जवाब दिया.
‘अच्छा, कब आ रही हैं मासी,’ उस की बेटी निशा ने पूछा?
‘परसों सुबह आ रही है,’ सुधा ने खिन्न मन से कहा, ‘अब सब शैड्यूल डिस्टर्ब हो जाएगा.’ बच्चों ने सहमति में सिर हिलाया.
तन्वी को कैसे बिज़ी रखा जाए ताकि उस के बौयफ्रैंड की बातें उस की बहन को न पता चल सके. इसी उधेड़बुन में सुधा का एक दिन निकल गया. वह अंदर से उस के आने से खुश न थी. लेकिन वह यह बात जता भी नहीं सकती थी. अगले दिन तन्वी सुधा के घर पहुंच गई. वह अपने साथ बहुत सारा सामान ले कर आई थी. कुछ सामान उस का था और कुछ सुधा व उस के बच्चों के लिए. आते ही वह सुधा से गले लगती हुई बोली, “कैसी हो दीदी?”