सपना जा चुकी थी लेकिन प्रोफैसर सावंत के दिल में तो जैसे समंदर की लहरें टकरा रही थीं. मायूसी और निराशा के भंवर में डूबे वे सपना के बारे में सोचते रहे. धीरेधीरे अतीत की यादों के चलचित्र उन के स्मृति पटल पर सजीव होने लगे...
उस दिन प्रोफैसर सावंत एम.ए. की क्लास से बाहर आए ही थे कि कालेज के कैंपस में उन्हें सपना खड़ी दिखाई दी. वह उन की ओर तेज कदमों से आगे बढ़ी. प्रोफैसर उसे कैसे भूल सकते थे. आखिर वह उन की स्टूडैंट थी. उन के जीवन में शायद सपना ही थी जिस ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था. सफेद सलवारसूट और लाल रंग की चुन्नी में वह बला की खूबसूरत लग रही थी. नजदीक आते ही सपना हांफते स्वर में बोली, ‘‘गुड मौर्निंग सर, कैसे हैं आप?’’
‘‘मौर्निंग, अच्छा हूं. आप सुनाओ सपना, कैसी हो?’’ प्रोफैसर ने हंसते हुए पूछा.
‘‘अच्छी हूं...कमाल है सर, आप को मेरा नाम अभी भी याद है,’’ सपना ने खुश होते हुए कहा.
‘‘यू आर राइट सपना, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें भूलना आसान नहीं होता...’’
प्रोफैसर जैसे अतीत की गहराइयों में खोने लगे. सपना ने टोकते हुए कहा, ‘‘सर, मैं आप से एक समस्या पर विचार करना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों नहीं, कहो... मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’
‘‘सर, मेरी सिविल सर्विसेज की परीक्षाएं हैं, मैं उन्हीं के लिए आप से कुछ चर्चा करना चाहती थी.’’
‘‘बड़ी खुशी की बात है. चलो, डिपार्टमैंट में बैठते हैं,’’ प्रोफैसर सावंत ने कहा.
अंगरेजी विभाग में सपना प्रोफैसर सावंत के पास की कुरसी पर बैठी थी और गंभीर मुद्रा में नोट्स लिखने में व्यस्त थी. अचानक प्रोफैसर को अपने पैर पर पैर का स्पर्श महसूस हुआ, उन्होंने फौरन सपना की ओर देखा. वह अपनी नोटबुक में डिक्टेशन लिखने में व्यस्त थी.