दूसरे दिन निशा निधि को स्कूल के लिए तैयार करने लगी तो उस ने कहा, ‘‘ममा, मुझे स्कूल नहीं जाना है.’’
‘‘बेटा, स्कूल तो हर बच्चे को जाना होता है. अगर आप स्कूल नहीं जाओगे तो डाक्टर कैसे बनोगे?’’
‘‘मुझे डाक्टर नहीं बनना है.’’
‘‘घर में रह कर बोर नहीं हो जाओगी... स्कूल में बहुत सारे फ्रैंड्स मिलेंगे. गेम होंगे और आप को अच्छीअच्छी बुक्स भी पढ़ने को मिलेंगी.’’
निधि के चेहरे पर थोड़ी सहजता देख कर निशा ने पुन: कहा, ‘‘शुचि भी आप के साथ जाएगी.’’
‘‘क्या वह भी मेरे साथ मेरी क्लास में पढ़ेगी?’’
‘‘नहीं बेटा, पर वह आप के स्कूल में ही पढ़ती है.’’
‘‘ओके ममा...’’
‘‘शुचि तुम तैयार हो गईं? चलो मैं तुम दोनों को स्कूल छोड़ आती हूं.’’
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‘‘आंटी, मेरी बस आ रही होगी.’’
‘‘आज मेरे साथ चलो. निधि भी कल से तुम्हारे साथ बस से आएगीजाएगी. आज उस की फीस जमा करा दूंगी.’’
‘‘ओके आंटी.’’
उस दिन निशा ने उन्हें स्कूल छोड़ दिया था. खुशी तो इस बात की थी कि कुछ ही दिनों में निधि ने स्वयं को स्कूल में ऐडजस्ट कर लिया था. अब वह बिना आनाकानी किए स्कूल जाने लगी थी. शुचि के साथ ने उसे पहले जैसी चंचल बना दिया था पर फिर भी वह कभीकभी रात में डरते हुए उठ कर बैठ जाती या नींद में बड़बड़ाती कि प्लीज अंकल, मुझे पनिश मत करो, मैं गंदी लड़की नहीं हूं.
निशा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. दीपक वैसे ही परेशान था. औफिस, कोर्टकचहरी... अभी सोच ही रही थी कि मोबाइल बज उठा. उस के फोन उठाते ही दीपक ने कहा, ‘‘निशा, स्कूल प्रशासन ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को बरखास्त कर दिया है तथा वकील नागेंद्र ने कोर्ट में विशेष अर्जी दे कर कोर्ट से मांग की है कि बच्ची की उम्र को देखते हुए बच्ची को कोर्ट न आने की अनुमति प्रदान की जाए. सिर्फ डा. संगीता तथा उस के द्वारा निधि के रिकौर्ड किए बयान को ही साक्ष्य मान लिया जाए. देखो क्या होता है? इस के साथ ही एक खुशखबरी और है, मेरे स्थानांतरण की अर्जी को मौखिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है. लिखित रूप में आदेश महीने भर में मिल जाना चाहिए.’’