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ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी. मैं ने प्लेटफार्म पर ट्रेन के पहुंचने से पहले अपना सामान समेटा और शीघ्रता से उतर गई. निगाहें बेसब्री से मिलन को ढूंढ़ रही थीं. थोड़ा आश्चर्य सा हुआ. हमेशा समय से पहले पहुंचने वाले मिलन आज लेट कैसे हो गए. तभी मेरे मोबाइल पर मिलन का संदेश आ गया.

‘‘सौरी डार्लिंग, आज बोर्ड की मीटिंग है और 9 बजे दफ्तर पहुंचना है, इसलिए तुम्हें लेने स्टेशन नहीं पहुंच पाया.’’ टैक्सी से घर पहुंची तो मिलन बरामदे की सीढि़यों पर ही मिल गए. साथ में निक्की भी थी. हलके गुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी, जो उस के जन्मदिन पर मिलन ने उसे भेंट की थी, सुर्ख बिंदी, लिपस्टिक और हाथों में खनकती चूडि़यां... सब मुझे विस्मित कर रहे थे. मैं ने प्यार से निक्की के गालों को थपथपाया, फिर कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाली और बोली, ‘‘तू क्यों इतनी जल्दी जा रही है? रुक जा, 1 घंटे बाद चली जाना.’’ ‘‘अगर अभी इन के साथ निकल गई तो आधे घंटे में पहुंच जाऊंगी, वरना पहले बस फिर मैट्रो, फिर बस. पूरे 2 घंटे बरबाद हो जाएंगे.’’

‘‘शाम को जल्दी आ जाएंगे,’’ कह कर मिलन सीढि़यां उतर गए और कार स्टार्ट कर दी. दौड़तीभागती निक्की भी उन की बगल में जा कर बैठ गई. सामान अंदर रखवा कर मैं ने भवानी को चाय बनाने का आदेश दिया. फिर पूरे घर का निरीक्षण कर डाला. हर चीज साफसुथरी, सुव्यवस्थित, करीने से सजी हुई थी.

चाय की प्याली ले कर भवानी मेरे पास आ कर बैठी तो मैं ने कहा, ‘‘रात के लिए चने भिगो दो. साहब चनेचावल बहुत शौक से खाते हैं.’’

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