पूर्व कथा
मनु को एक दिन पत्र मिलता है जिसे देख कर वह चौंक जाती है कि उस की भाभी यानी अनुपम भैया की पत्नी नहीं रहीं. वह भैया, जो उसे बचपन में ‘डोर कीपर’ कह कर चिढ़ाया करते थे.
पत्र पढ़ते ही मनु अतीत के गलियारे में भटकती हुई पुराने घर में जा पहुंचती है, जहां उस का बचपन बीता था, लेकिन पति दिवाकर की आवाज सुन कर वह वर्तमान में लौट आती है. वह अनुपम भैया के पत्र के बारे में दिवाकर को बताती है और फिर अतीत में खो जाती है कि उस की मौसी अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ दिन सपरिवार रहने आ रही हैं. और सारा इंतजाम उन्हें करने को कहती हैं.
आखिर वह दिन भी आ जाता है जब मौसी आ जाती हैं. घर में आते ही वह पूरे घर का निरीक्षण करना शुरू कर देती हैं और पूरे घर की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले लेती हैं. पूरे घर में उन का हुक्म चलता है.
बातबात पर वह अपनी बहू रजनी (अनुपम भैया की पत्नी) को अपमानित करती हैं, जबकि वह दिनरात घर वालों की सेवा में हाजिर रहती है और मौसी का पक्ष लेती है. एक दिन अचानक बड़ी मौसी, रजनी को मनु की मां के साथ खाना खाने पर डांटना शुरू कर देती है तो रजनी खाना छोड़ कर चली जाती है. फिर मनु की मां भी नहीं खाती. मौसी, मां से खाना न खाने का कारण पूछती है, और अब आगे...
गतांक से आगे...
अंतिम भाग
मां की आवाज भर्रा गई थी, ‘दीदी, मेरी रसोई से कोई रो कर थाली छोड़ कर उठ जाए, तो मेरे गले से कौर कैसे उतरेगा?’