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‘हैलो राधिका, तुम ठीक 8 बजे होटल पहुंच जाना.’

‘‘ओके... राजन. आप भी टाइम से आ जाना.’’

‘जो हुक्म मेरी मलिका. बंदा समय पर हाजिर हो जाएगा.’

‘‘आप भी न, कुछ भी कह देते हो,’’ शरमा कर, मुसकराते हुए राधिका ने मोबाइल फोन काट दिया.

राधिका ने तैयार हो कर गुनगुनाते हुए, आईने में अपनेआप को गौर से ऊपर से नीचे तक देखा. उस का खूबसूरत बदन अभी तक सांचे में ढला हुआ था, तभी तो राजन उसे बांहों के घेरे में ले कर हमेशा कहते, ‘फिगर से आप की उम्र का पता ही नहीं चलता जानेमन...’ और शरारत से हंसने लगते.

तब राधिका थोड़ा शरमा कर रह जाती और कहती, ‘आप भी न...’

नीले रंग की खूबसूरत साड़ी में चांदी के रंग की कारीगरी का काम, नए जमाने का ब्लाउज, जिस का भार पीछे बंधी डोरी ने संभाल रखा था. बालों को हेयर ड्रैसर ने बड़े ही खूबसूरत ढंग से संवार कर 2 लटों को सामने निकाल दिया था.

राधिका के गोरगोरे रुई से भी नरम हाथों पर लोगों की नजर बरबस ही उठ जाती थी.

राधिका को याद है कि पिछली पार्टी में मेघना भटनागर ने कहा भी था, ‘राधिकाजी, आप को तो फिल्म इंडस्ट्री में होना चाहिए था. आप तो इतनी खूबसूरत हो कि आप को छूने से भी डर लगता है. एकदम कांच की गुडि़या सी लगती हो आप.’

ऐसी बातें पहले राधिका को अंदर तक गुदगुदा जाती थीं, लेकिन अब वह सुन कर केवल मुसकरा देती है.

राधिका ने साड़ी से मैच करती ज्वैलरी पहन कर फाइनल टच और फाइनल लुक दिया और मोबाइल फोन और मैचिंग पर्स ले कर बंगले से बाहर आ गई, जहां ड्राइवर पहले से ही हाथ बांधे अपनी ड्यूटी के लिए खड़ा था.

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