मेरे इतना कहते ही उस के चेहरे पर दुख की ऐसी काली छाया दिखाई दी मानो हवा के तेज झोंके से बदली ने सूरज को ढक लिया हो. उस की आंखें मेरे चेहरे पर ऐसे टिक गईं मानो जानना चाहती हों, कहीं मैं मजाक तो नहीं कर रही.
लेकिन यह सच था. एक पल के लिए मुझे भी लगा कि भले ही यह सच था लेकिन मुझे उसे ऐसे सपाट शब्दों में नहीं बताना चाहिए था. वह प्लेट ले कर डाइनिंग टेबल के दूसरे छोर की कुरसी पर जा बैठा. वह लगातार मुझे देख रहा था. वह बहुत उदास था. शायद उस की आंखें भी नम थीं. मैं ने खाना खाते हुए उसे कई बार बहाने से देखा था. वह सिर्फ बैठा था, उस ने खाना छुआ भी नहीं था. मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मैं क्या करती? ऐसे में उस से क्या कहती?
शादी में औफिस से बहुत से लोग आए लेकिन सुबोध नहीं आया. हां, औफिस वालों के हाथ उस ने बहुत ही खूबसूरत तोहफा जरूर भिजवाया था. क्रिस्टल का बड़ा सा फूलदान था, जिस ने भी देखा तारीफ किए बिना न रह सका.
विवाह होते ही मैं और प्रखर अपनी नई दुनिया में खो गए. हम ने वर्षों इस सब के लिए इंतजार किया था. हमें लग रहा था, हम बने ही एकदूसरे के लिए हैं. शादी के बाद हम विदेश घूमने चले गए.
महीनेभर की छुट्टियां कब खत्म हो गईं पता ही नहीं चला. मैं औफिस आई तो सहकर्मियों ने सवालों की झड़ी लगा दी. कोई ‘छुट्टियां कैसी रहीं’ पूछ रहा था, कोई नई ससुराल के बारे में जानना चाह रहा था, कोई प्रखर के बारे में पूछ कर चुटकी ले रहा था. वहीं, कोई शादी के अरेंजमेंट की तारीफ कर रहा था तो कोईकोई शादी में न आ पाने के लिए माफी भी मांग रहा था.