लेखिका- प्रेमलता यदु 

यह पल मेरे लिए अत्यंत दुखद एवं आश्चर्य से परिपूर्ण था. आखिर कोई इतना अभिमानी कैसे हो सकता है. लायब्रेरी कार्ड बनाने के दौरान ज्ञात हुआ कि अनादि एम कौम फाइनल ईयर में है और वह इस कालेज का मेघावी छात्र है. उस पर फर्स्ट ईयर से ले कर फाइनल ईयर तक की लड़कियां मरती हैं. वह इस कालेज की शान व लड़कियों की जान है. पढ़ाईलिखाई, खेलकूद से ले कर सांस्कृतिक गतिविधियां सब में उस की जबरदस्त पकड़ है. इतनी जानकारी पर्याप्त थी उस के इस अप्रत्याशित बेरुखे बरताव को समझने के लिए.

सैशन स्टार्ट हो चुका था. मैं अपनी पढ़ाई, प्रैक्टिकल, थ्योरी इन सब पर ध्यान देने लगी. अलगअलग फैकल्टी होने के बावजूद अनादि से मेरा सामना रोज़ ही हो जाता. मैं अनादि को देख भावुक हो जाती. मुझे इस बात का डर था कहीं मेरे दिल में हिलोरे मार रहा प्यार, नज़रों से इज़हारे मोहब्ब्त का राज़ ज़ाहिर न कर दे, इसलिए मैं सदा अपनी पलकें झुकाए चुपचाप आगे निकल जाती. वह भी मुझे तिरछी नजरों से देखता, फिर व्यंग्यात्मक मुसकान के साथ अकड़ता हुआ चला जाता.

सैशन बीतने को था, फाइनल एग्जाम की डेट्स आ ग‌ई थीं, लेकिन अब तक मैं अनादि से हाले दिल न कह पाई थी. कहती भी कैसे, उस की बेवजह की बेरुखी व अहम आड़े आ जाते जो मुझे कुछ कहने या करने की इजाजत न देते.

एग्जाम से पहले कालेज में फाइनल ईयर के स्टूडैंट्स के लिए फेयरवेल पार्टी का आयोजन किया गया, जिस में सभी छात्रछात्राओं ने बड़ी ही शिद्दत से शिरकत की. पार्टी हौल में बज रहे इंस्ट्रूमैंटल म्यूजिक पर सभी के पांव डांसफ्लोर पर थिरक रहे थे. अनादि तो न जाने कब से डांस कर रहा था. हर लड़की उस के संग डांस करना चाह रही थी और वह भी हर किसी के साथ डांस करने में मगन था. उस का यह बेबाकपन मुझे हैरान और परेशान कर रहा था. दिल के हाथों मजबूर क‌ई बार खुद ही मेरे कदम अनादि की ओर उठते और फिर थम जाते. मैं नहीं चाहती थी अपने आत्मसम्मान को ताक में रख कर उस के करीब जाऊं.

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