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उस पल मुझे निशा को अपने पति को छूना अच्छा नहीं लगा. सच तो यह है कि मुझे निशा ही अच्छी लगना बंद हो गई. पार्टी में मेरा उस से कई बार आमनासामना हुआ, पर मैं उस से सहज और सामान्य हो कर बातें नहीं कर पाई.

निशा को ले कर मेरे मन में पैदा हुआ मैल अमित की नजरों से ज्यादा दिन नहीं छिपा रहा. इस विषय पर एक शाम उन्होंने चर्चा छेड़ी, तो मैं ने कई दिनों से अपने मन में इकट्ठा हो रहे गुस्से व शिकायतों का जहर उगल दिया.

‘‘शादी हो जाने के बाद समझदार इनसान अपनी पुरानी सहेलियों से किनारा कर लेते हैं. अब आफिस में अलग से इश्क लड़ाने का चक्कर तुम खत्म करो, नहीं तो ठीक नहीं होगा,’’ मुझे बहुत गुस्सा आ गया था.

‘‘तुम मुझ पर शक कर रही हो,’’ अमित ने जबरदस्त सदमा लगने का नाटक किया.

‘‘मैं ही नहीं, इस बात का सच तुम्हारा पूरा आफिस जानता है.’’

‘‘प्रिया, तुम लोगों की बकवास पर ध्यान दे कर अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो.’’

‘‘मेरे मन की सुखशांति के लिए तुम्हें निशा से किसी भी तरह का संबंध नहीं

रखना होगा.’’

‘‘तुम्हारे आधारहीन शक के कारण मैं अपने ढंग से जीने की अपनी स्वतंत्रता को खोने के लिए तैयार नहीं हूं.’’

‘‘निशा का आज से मेरे घर में घुसना बंद है और अगर तुम ने कभी उस के फ्लैट में कदम रखा, तो मैं यहां नहीं रहूंगी.’’

‘‘मुझे बेकार की धमकी मत दो, प्रिया. अगर तुम ने निशा के साथ कभी भी जरा सी बदतमीजी की तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

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