लेखक- बद्री शंकर
पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
काजल और सुंदर स्कूल के दिनों से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर चूंकि ऊंची जाति का था और काजल दलित थी इसलिए सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का खूब शोषण हुआ. इधर काजल पढ़ाई में तेज होने के चलते आगे बढ़ती गई. इसी बीच सुंदर की जिंदगी में मीनाक्षी आई जिस के पिता उन दोनों का रिश्ता कराना चाहते थे.
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‘‘तेरी भलाई इसी में है कि तू मीनाक्षी के संग जोड़ी जमा और पढ़लिख. मैट्रिक पास करा दिया न? सैकंड डिवीजन ही सही.
‘‘कल कालेज चलना मेरे साथ. दाखिला करा दूंगा,’’ कह कर आंखें तरेरते हुए मिश्राजी वहां से चले गए.
उस दिन भी सुंदर ने खाना नहीं खाया. सब ने लाख कोशिश की, पर बेकार गया.
मीनाक्षी सुंदर को समझाती, ‘‘घोड़े हो गए हो पूरे 6 फुट के. मन के मुताबिक नतीजा नहीं लाया तू?’’
‘‘नहीं मीनाक्षी, इस बार या तो फर्स्ट आऊंगा या फिर जान दे दूंगा,’’ सुंदर ने पूरे भरोसे के साथ कहा.
‘‘बाप रे...’’ मीनाक्षी ने मुंह पर हाथ रख लिया, ‘‘तू इतना बुजदिल है... जब मैं साथ रहूंगी तो जान कैसे देगा? मैं क्या तमाशा देखूंगी? मैं भी...’’ सुंदर ने अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया.
‘‘तुम्हारा तो सबकुछ है. तुम ऐसा क्यों करोगी?’’
‘‘जब तुम नहीं तो कौन है मेरा?’’ मीनाक्षी की आंखों में आंसू आ गए.
‘‘मीनाक्षी, ऐसे सपने मत पालो. रास्ते का ठीकरा किसी का भविष्य नहीं हो सकता. मैं गरीब पूजापाठ कराने वाले बाबूजी का बेटा हूं. तेरी जैसी अमीरी मेरे पास नहीं है. तेरे लिए तो शहजादों की कतार लगी है.’’