छाया की सीनियर डाक्टर हाथ में फै्रक्चर की वजह से छुट्टी पर थीं. नेहा की प्रीमैच्योर डिलिवरी आज ही करवानी थी. उन का केस अनेक जटिलताओं से भरा था. केस की सारी जिम्मेदारी छाया पर आ पड़ी, एक तो उस दिन वह खुद को ही नहीं संभाल पा रही थी. उस पर जीवन का वह पहला पर अत्यंत जटिल केस. उस की अपनी निराशा उस के हाथों पर हावी हो गई और जिस का डर था वही हुआ. छाया ने बच्चे को तो बचा लिया पर मां के शरीर में फैलते जहर को न रोक पाई.
सुबह नेहा की मौत की खबर सारे अस्पताल में आग की तरह फैल गई. अस्पताल ने सारी जिम्मेदारी छाया पर डाल कर पल्ला झाड़ लिया. सब की नाराजगी और मीडिया में मचे हल्ले के चलते साल भर के लिए छाया के प्रैक्टिस करने पर रोक लगा दी गई. चौबीस घंटों में ही फिर से रिजैक्ट. ऐसा लगा जैसे वाकई वह एक वस्तु है.
एक के बाद एक दूसरी असफलता ने छाया के लिए जीवन के सारे माने ही बदल दिए. 1-2 बार आत्महत्या का प्रयास भी किया... जिंदगी का लक्ष्य दिशा जैसे भूल गई. मनोचिकित्सकों की भी सलाह ली, पर सब बेकार. मांपिताजी ने हार कर निशीथ के सामने घुटने टेकने का भी मन बना लिया. पर पता चला कि वह विदेश जा चुका है. अपनी बेटी की ऐसी हालत देख असहाय पिता ने एक दोस्त की सलाह पर आबोहवा बदलने के लिए छाया को शिमला भेज दिया उस के मामा के पास ताकि पुराने माहौल से निकल कर एक नए माहौल में सांस ले सके.