यह सुन अवंतिका कुछ देर मौन खड़ी रही फिर बोली, ‘‘ठीक है भैया बना दीजिए वीआईपी पास.’’ कहते हुए अवंतिका ने अपने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दे दिए जो संजय ने उसे दोनों बच्चों की स्कूल फीस के लिए दिए थे.
यहां इस सर्व समस्या निवारण केंद्र के प्रतीक्षालय में, कैंटिन में इतनी भीड़ था कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेला लगा हो. वीआईपी पास बनाने के बाद अवंतिका प्रतीक्षालय की कैंटीन में कौफी पीने बैठ गई. करीब 1 घंटे के बाद उस का नंबर आया. आचार्यजी से मिल कर अवंतिका ने अपने घर की वे सारी समस्याएं उन के समक्ष रख दीं जो वास्तव में समस्याएं थी ही नहीं. मात्र उस के मन का भ्रम था, लेकिन उस के इस भ्रम के बीज को आचार्यजी ने बड़ा वृक्ष का रूप दे दिया.
आचार्यजी ने अवंतिका को परिवार के हर सदस्य के लिए अलगअलग रत्न दे दिए और कहा कि इन से सभी समस्याओं का निवारण हो जाएगा, साथ ही साथ ज्योतिषाचार्यजी ने अवंतिका से अच्छीखासी रकम भी ऐंठ ली. यह सर्व समस्या निवारण केंद्र पूरी तरह से अंधविश्वास, ग्रहनक्षत्रों का भय व रत्नों का बुना हुआ ऐसा माया जाल था जो व्यापार का व्यापक रूप ले कर फूलफल रहा था, जिस में लोग स्वत: फंसते चले जा रहे थे और यह खेल पूर्णरूप से भय और लोगों की अज्ञानता का प्रतिफल था.
अवंतिका दोनों बच्चों और संजय के पहुंचने से पहले ही घर लौट आई और अनुकृति के घर आते ही उस के पीछे लग गई कि वह आचार्यजी के द्वारा दिए गए उस रत्न को पहन ले.अनुकृति नहीं पहनना चाहती थी. वह चाहती थी कि उस की मां उस की परेशानियों को समझे और उसे ट्यूशन जाने की अनुमति दे दे, लेकिन अवंतिका कुछ समझने को तैयार ही नहीं थी, वह तो बस बारबार अनुकृति को इस बात पर जोर दे रही थी कि यदि वह ज्योतिषाचार्यजी के द्वारा दिए गए रत्न को पहन लेगी तो बिना ट्यूशन जाए ही 12वीं कक्षा अच्छे नंबरों से पास हो जाएगी. हार कर आखिरकार अनुकृति ने रत्न पहन ही लिया.