जब तानाशाह, डिक्टेटर, फौजों के कमांडर आतंक और अत्याचार फैलाते हैं, तो उन की सनक पैसे और पावर के लिए होती है. पर जब धर्म की रक्षा के नाम पर लूट, दंगा, हत्याएं, जीनोसाइड और पूरी कौम के खात्मे की बात होती है, तो नजर औरतों पर होती है. आज धर्म का जो अत्याचार और आतंक दुनिया भर में एक बार फिर सिर उठा रहा है, उस की वजह पिछले दशकों में औरतों को मिलने वाली आजादी है. हर धर्म की जड़ को खाद व पानी देने वाली औरतें ही होती हैं. पहले इन्हें डरा कर गाय बनाया जाता है और फिर थोड़ा चारा दे कर पालतू बना डाला जाता है. हर धर्म में औरतों को गुलाम बनाने की कोशिशें होती हैं और जो धर्म इस में सफल हो जाता है वही पनपता है. आज जो धर्म बड़े पैमाने पर दिख रहे हैं उन में औरतों पर हुए अत्याचारों की कहानियों पर इतने पेज लिखे जा सकते हैं कि अब तक बनाया गया सारा कागज भी कम पड़ जाए.
इसलामिक आतंकवाद का पहला निशाना उन की अपनी औरतें ही हैं जिन्हें वे छूट नहीं देना चाहते और इस तरह का इसलामिक राज कायम करना चाहते हैं, जिस में औरतें गुलाम और पैर की जूती बनी रहें और वे न दिखने वाली धर्म के रिवाजों की जंजीरों की जकड़न में बंधी रहें. अलकायदा, बोको हराम, तालिबानी, इसलामिक स्टेट सब का एक ही मकसद है, अपनी औरतों पर धर्म के नाम पर कंट्रोल करना. भारत में भाजपा सांसद साक्षी महाराज जब कहते हैं कि हर औरत को 4 बच्चे पैदा करने चाहिए, तो वे हिंदुओं की गिनती नहीं बढ़ाना चाहते. वे औरतों को गुलाम बनाए रखना चाहते हैं ताकि वे बच्चों की खातिर धर्म के दलालों की गुलाम बनी रहें. अगर रोमन कैथोलिक और कट्टरपंथी प्रोटेस्टैंट ईसाई गर्भपात को अवैध ठहराते हैं तो इसलिए कि बच्चे के कारण विवाहित या अविवाहित औरतें कमजोर बनी रहें और समझौते करती रहें.