सख्त सरकार के वादे करने आसान हैं पर सरकार चलाना कोई मंत्र पढ़ना या हवन पढ़ना नहीं, जिस में जजमान 501 चीजें जमा कर दे और पुजारी उन्हें आग में झोंक कर कह दे कि सबकुछ ठीक हो गया.

सरकार चलाने का मतलब है लाखों बाबुओं को मैनेज करना, सही जानकारी जमा करना, कानून और अदालतों में भरोसा पैदा करना. आजकल किसी भी दिन का अखबार खोल लें बलात्कार के मामले दिख जाएंगे. ये वे मामले हैं, जिन में औरतें और लड़कियां ही नहीं छोटी बच्चियां तक शामिल हैं जो पुलिस में जाने की हिम्मत तभी करती हैं जब वे अपने और अपने पूरे परिवार के भविष्य पर कालिख पुतवाने को तैयार हों.

देश की कानून व्यवस्था यह है कि जिद्दी सरकार लाखों किसानों को नहीं मना पा रही कि उस के कानून सही हैं और नतीजे में किसानों ने एक मुख्यमंत्री को

अपने ही राज्य में एक गांव में घुसने नहीं दिया.

कानून व्यवस्था का यह हाल है कि अदालतों को लोग अब पहचान गए हैं कि ऊपर से नीचे तक की अदालतें उन्हें बंद कर रही हैं, जो सरकार की पोल खोल रहे हैं, उन को नहीं जो गले में भगवा दुपट्टा बांधे चौराहों पर वसूली कर रहे हैं.

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महिलाएं इस गिरती कानून व्यवस्था की सब से बड़ी पीडि़ता हैं, क्योंकि उन्हें ही अपने घर पर होने वाले हमलों का खमियाजा भुगतना पड़ता है या उन का अपना कोई बेगुनाह जेल में ठूंस दिया जाए तो महीनों अदालतों के चक्कर लगाते रहना पड़ता है.

अगर हर रोज बलात्कार, हत्या, चेन झपटमारी, चोरी, फ्रौड के मामले सामने आ रहे हैं तो हर रोज अदालतों से फैसले भी आ रहे हैं कि महीनों तक जेल में सड़ रहे व्यक्ति के खिलाफ तो कोई सुबूत ही नहीं है, जिस पर उसे अपराधी ठहराया जा सके. इस का मतलब है कि पुलिस और नेताओं के पास अपार ताकत है कि वे महीनों तक किसी को बंद रखवा सकें और कोई चूं भी न कर सके.

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