औरत की महत्त्वाकांक्षा ने जब उड़ान भरी तो उस ने अपने हर सपने को सच करने की काबिलीयत दुनिया को दिखा कर यह साबित कर दिया कि वह भी योग्यता में पुरुषों से कम नहीं है. कैरियर के प्रति वह इतनी सचेत हो गई कि सफलता की सीढि़यां चढ़तेचढ़ते उस मुकाम पर पहुंच गई जहां परिवार को समय दे पाना उस के लिए कठिन होने लगा. आधुनिक जीवनशैली की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए चूंकि औरत का काम करना अनिवार्य हो गया इसलिए पुरुष भी उसे सहयोग देने के लिए आगे आया और ‘डबल इनकम, नो किड्स’ की धारणा जोर पकड़ने लगी.
अपने निजत्व की चाह व भौतिक सुखसाधनों में जुटी औरत चाहे कितनी ही आगे क्यों न निकल जाए पर कभीकभी उसे यह एहसास अवश्य होने लगता है कि मातृत्व सुख से बढ़ कर न तो कोई सुखद अनुभूति होती है, न ही सफलता. यही वजह है कि आरंभ में कैरियर के कारण मां बनने की खुशी से वंचित रहने वाली औरतें भी आज 30-35 वर्ष की आयु पार कर के भी गर्भधारण करने को तैयार हो जाती हैं. देर से ही सही, किंतु ज्यादा उम्र हो जाने के बावजूद वे प्रेगनेंसी में होने वाली दिक्कतों का सहर्ष सामना करने को तैयार हो जाती हैं. उस समय न तो कैरियर की बुलंदियां उन्हें रोक पाती हैं, न ही कोई और चाह.
प्रकृति से मिला उपहार
प्रकृति से मिला मां बनने का उपहार औरत के लिए सब से बेहतरीन उपहार है. वह इस के हर पल का न सिर्फ आनंद उठाती है वरन उसे इस खूबसूरत एहसास को अनुभूत करने का गर्व भी होता है. मातृत्व का प्रत्येक पहलू औरत को पूर्णता व आश्चर्यजनक अनुभव से भर देता है. मां बनते ही अचानक वह उस शिशु के साथ सोनेजागने, बात करने व सांस लेने लगती है. मां बनना एक ऐसा भावनात्मक अनुभव है जिसे किसी भी औरत के लिए शब्दों में व्यक्त करना असंभव होता है. यह मां ही तो होती है जिस का अपने बच्चे के साथ जुड़ाव न सिर्फ शारीरिक व मानसिक होता है वरन अलौकिक भी होता है. बच्चे के जन्म के साथ उसे जो खुशी मिलती है, वह उसे बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर के भी नहीं मिल पाती है. औरत की जिंदगी बच्चे के जन्म के साथ ही पूरी तरह बदल जाती है.