इंद्र ने नर्सिंगहोम का नाम बता दिया तो वह वहां चली गई. अंजलि ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, सब के चेहरे खिल उठे. सास जल्द से जल्द नवजात शिशु को गोद में ले कर दादी बनने की हसरत पूरी करना चाहती थी.
कुछ घंटे के इंतजार के बाद अंजलि को उस के केबिन में लाया गया. साथ में नर्स की गोद में बच्चा भी था. नर्स ने कुछ नेग के साथ बच्चा सास की गोद में रख दिया. बच्चे को देख इंद्र का मन पुलकित हो उठा.
‘‘बिलकुल इंद्र पर गया है,’’ सास पुचकारते हुए बोली. इंद्र दौड़ कर बाजार से मिठाई लाया. अस्पताल के सारे स्टाफ का मुंह मीठा कराया. एक तरफ खड़ी पूर्णिमा अंदर ही अंदर रो रही थी. किसी का ध्यान उस पर नहीं गया. सब को बच्चे और अंजलि की फिक्र थी.
जो खुशी उसे देनी चाहिए थी वह अंजलि से मिल रही थी. जो मानसम्मान उसे मिलना चाहिए था, वह अंजलि को मिल रहा था. यह सब उस के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा थी. मौका देख कर वह बिना बताए घर लौट आई. बिस्तर पर पड़ते ही वह फूटफूट कर रोने लगी. क्योंकि यहां उस का रुदन सुनने वाला कोई नहीं था. तभी मां का फोन आया. वह फोन पर ही रोने लगी.
‘‘पूर्णिमा, चुप हो जा मेरी बच्ची. मैं अभी तेरे भाई को तुझे लेने के लिए भेज रही हूं. परेशान मत हो.’’ मां ने ढांढस बंधाया.
‘‘क्यों न होऊं परेशान, अंजलि मां बन गई. एक मैं हूं जो बांझ के कलंक के साथ जी रही हूं.’’ पूर्णिमा का क्षोभ, गुस्सा, झलक गया. वह सिसकती रही.