गौतम बुद्ध की शादी 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नाम की एक कन्या से होती है और 29 वर्ष की आयु में उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होने के बाद यानी शादी के 13 वर्ष बाद उन्हें यह ध्यान आता है कि उन्हें संन्यास लेना है और तभी वे अचानक एक दिन आधी रात को बिना अपनी पत्नी को बताए अपनी पत्नी और नवजात शिशु को सोता छोड़ घर से चुपचाप निकल जाते हैं.
सांसारिक दुख उन्मूलन की तथा ज्ञान के खोज की ऐसी उत्कट अभिलाषा कि पत्नी और बेटे की जिम्मेदारी तक भूल गए, उन के पीछे उन के कष्टों का भी ज्ञान न रहा.
गौतम बुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि वे बचपन से ही बेहद करुण हृदय वाले थे किसी का भी दुख नहीं देख सकते थे और ऐसे करुण हृदय वाले बुद्ध को अपनी पत्नी का ही दुख नजर नहीं आया.
अपनी पत्नी की ऐसी उपेक्षा करने वाले करुण हृदय बुद्ध के अनुसार, दुख होने के अनेक कारण हैं और सभी कारणों का मूल है तृष्णा अर्थात पिपासा अथवा लालसा.
तो क्या ज्ञानप्राप्ति की उन की पिपासा ने उन के पीछे उन की पत्नी और उन के नवजात की जिंदगी को असंख्य दुखों की ओर नहीं धकेला था? बुद्ध के अष्टांगिक मार्गों में एक सम्यक संकल्प अथवा इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प करना तथा दूसरा सम्यक स्मृति अर्थात् अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी का स्मरण भी है.
मानसिक कष्ट देना भी हिंसा
इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प... तो क्या, जब गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग किया तो उन के इस कृत्य से उन की पत्नी को जिस प्रकार की मानसिक वेदना झेलना पड़ी थी वह क्या हिंसा नहीं थी? किसी को शारीरिक आघात पहुंचाना ही हिंसा नहीं होता, बल्कि मानसिक कष्ट देना भी एक तरह की हिंसा ही तो है. अब यदि उन के अष्ट मार्ग में से सातवें मार्ग पर भी नजर डालें तो इन के अनुसार, ‘अपने कर्मों के प्रति सावधानी तथा विवेक का स्मरण.’