2500 वर्ष पहले प्राचीन ग्रीस में ‘‘डेल्फिक गेम्स’’की शुरूआत हुई थी और इन्हें ओलंपिक के समान माना जाता है. ओलंपिक शारीरिक खेलों के लिए जाने जाते हैं, जबकि ‘डेल्फिक गेम्स’कला और संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. डेल्फिक गेम्स - संगीत और ध्वनि, परफॉर्मिंग आर्ट्स, भाषा-आधारित कला, व्हिज्युअल आर्ट्स, सामाजिक कला, पर्यावरण कला और वास्तुकला सहित छह प्रमुख कला श्रेणियों का प्रतिनिधित्व कर, सैकड़ों उप- श्रेणियों और शैलियों को तथा कई नए प्रकार की कला, कलाप्रेमी और विभिन्न कलाकारों के लिए एक सामान मंच प्रदान करने का एक अमूल्य काम करता है. आधुनिक डेल्फिक खेलों को 1994 में पुनर्जीवित किया गया था. कला और संस्कृति की उन्नति और उस संदर्भ में विचार- विमर्श करने के लिए डेफ्लिक गेम्स एकमात्र वैश्विक मंच है. बर्लिन स्थित आंतरराष्ट्रीय डेल्फिक गेम्स का आयोजन दुनिया भर में हर चार वर्ष में एक बार किया जाता है. अब तक यह प्रतियोगिता आठ देशों की यात्रा कर चुकी है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे विभिन्न देशों में डेल्फिक गेम्स के कुल 3 सत्रों में भाग लेकर स्वर्ण और रजत पदक जीते हैं.
भारत में ‘डेल्फिक खेलों’’को बढ़ावा देन के मकसद से कुछ वर्ष पहले भारत में ‘‘इंडियन डेल्फिक काउंसिल’’का गठन किया गया था. धीरे धीरे इस तरह के खेलों को लेकर भारत के राज्यो में काम किया गया. अब तक महाराष्ट् राज्य सहित देश के 22 राज्यों मंे डेल्फिक खेलों को लेकर संगठन बने हुए हैं. महाराष्ट् राज्य में हाल ही में ‘‘डेल्फिक काउंसिल आफ महाराष्ट्’’का गठन किया गया, जिसके प्रतीक चिन्ह ‘लोगो’का अनावरण कई फिल्मी हस्तियो की मौजदूगी में महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय भगत सिंह कोश्यारी के हाथों किया गया. ‘‘डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र’’ का प्रतीक चिन्ह(लोगो) ‘पानी‘ है और प्राचीन काल से डेल्फिक गेम्स का यह एक अनूठा प्रतीक है. ‘कई कलाओं के माध्यम से शांति’ प्रस्थापित करने का रूपक ‘पानी‘ है. अंतर्राष्ट्रीय डेल्फिक काउंसिल एक गैर- सरकारी, गैर-राजनीतिक, गैर- सांप्रदायिक, गैर-धार्मिक संगठन है. यह दुनिया का एकमात्र मंच है, जो कला और संस्कृतियों का पोषण कर समाज में शांति का संदेश देता है.