मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे गूढ़ और महत्वपूर्ण अंग है जिसे खोपड़ी के अंदर बहुत ही नजाकत से संभाल कर रखा जाता है. लेकिन खराब लाइफस्टाइल और कई बीमारियां मस्तिष्क के लिए बड़ा खतरा बन जाती हैं. स्ट्रोक इन्हीं में से एक ऐसी बीमारी है, जो वैश्विक स्तर पर चार में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. हालांकि सभी तरह के स्ट्रोक में तकरीबन 80 फीसदी मामलों से बचा जा सकता है, बशर्ते कि इसकी सही समय पर पहचान की जाए ताकि मरीज को तत्काल अस्पताल पहुंचाकर उसे लकवाग्रस्त होने तथा मौत से बचाया जा सके.
स्ट्रोक की स्थिति में लोगों को तत्काल कार्रवाई करने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है और 6—एस पद्धति से इसकी पहचान करने में मदद मिलती है. ये हैं: सडेन यानी लक्षणों की तत्काल उभरने की पहचान, स्लर्ड स्पीच यानी जुबान अगर लड़खड़ाने लगे, साइड वीक यानी बाजू, चेहरे, टांग या इन तीनों में दर्द होना, स्पिनिंग यानी सिर चकराना, सिवियर हेडेक यानी तेज सिरदर्द और छठा सेकंड्स यानी लक्षणों के उभरते ही कुछ सेकंडों में अस्पताल पहुंचाना. कई सारे अध्ययन बताते हैं कि स्ट्रोक पीड़ित मरीज की प्रति मिनट 19 लाख मस्तिष्क कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, लगभग 140 करोड़ स्नायु संपर्क टूट जाता है और 12 किमी तक स्नायु फाइबर खराब हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मिनट भर की देरी भी मरीज को स्थायी रूप से लकवाग्रस्त और मौत तक की स्थिति में पहुंचा देती है.
शालीमार बाग स्थित मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरो साइंस विभाग के प्रिंसिपल कंसलटेंट डॉ शैलेश जैन के अनुसार, खराब लाइफस्टाइल, खासकर खानपान की गलत आदतें, जंक फूड, मांस—अंडे का सेवन आदि के कारण कोरोनरी आर्टेरियल डिजीज, स्ट्रोक और इंट्राक्रेनियल हेमरेज की नौबत अब दशक पुरानी बात हो गई है. तनाव, धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन, खानपान की गलत आदतें और शारीरिक गतिविधियों की कमी समेत खराब लाइफस्टाइल स्ट्रोक का कारण बनती हैं, वहीं खानपान की स्वस्थ आदतें अपनाने से देखा गया है कि 80 फीसदी से ज्यादा मामलों को टाला जा सकता है.