सुष्मिता के मांबाप के चेहरे पर संतोष था कि उन की बेटी का रिश्ता एक अच्छे घर में होने जा रहा है. सुष्मिता और सागर ने एकदूसरे की आंखों में देखा और मुसकराए. इस के बाद वे सुंदर सपनों के दरिया में डूबते चले गए.
सुष्मिता अपने महल्ले के सरकारी इंटर स्कूल में गैस्ट टीचर थी और उस के पिता सिविल इंजीनियर. उन्होंने अपने एक परिचित ठेकेदार के बेटे सागर
से, जो एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर था, सुष्मिता का रिश्ता तय कर दिया.
सुष्मिता और सागर जब मिले तो उन्हें आपसी विचारों में बहुत मेल लगा, सो उन्होंने भी खुशीखुशी रिश्ते के लिए हामी भर दी.
सगाई के साथ ही उन दोनों के रिश्ते को एक सामाजिक बंधन मिल चुका था. कंपनी के काम से सागर को सालभर के लिए विदेश जाना था, इसलिए शादी की तारीख अगले साल तय होनी थी.
सुष्मिता से काम खत्म होते ही लौटने की बात कह कर सागर परदेश को उड़ चला. सुष्मिता ने सागर का रुमाल यह कहते हुए अपने पास रख लिया कि इस में तुम्हारी खुशबू बसी है.
एक शाम सुष्मिता अपनी छत पर टहल रही थी और हमेशा की तरह सागर वीडियो काल पर उस से बातें कर रहा था. जब बातों का सिलसिला ज्यादा हो गया तो सुष्मिता ने सागर को अगले दिन बात करने के लिए कहा. इस के थोड़ी देर बाद सुष्मिता ने काल काट दी.
इस के बाद जब सुष्मिता नीचे जाने के लिए पलटी तो अचानक उस की आंखें अपने पड़ोसी लड़के निशांत से मिल गईं जो अपनी छत पर खड़ा उन दोनों को बातें करता हुआ न जाने कब से देख रहा था.