मेरा एक प्रेरणास्रोत है.
आप कहेंगे- सभी के अपने-अपने प्रेरणास्रोत होते हैं, इसमें नयी क्या बात है ?
आपकी बात सही है, मगर सुनिए तो, मेरा प्रेरणास्रोत एक ईमानदार बंदर है, मर्कट है .
पड़ गए न आश्चार्य में ? दोस्तों ! अब मनुष्य, मानव, महामानव कहां रहे, कहिए, क्या मैं गलत कहता हूं .अब तो प्रेरणा लेने का समय उल्लू, मच्छर, चूहे, श्वान इत्यादि आदि से लेने का आ गया है.
जी हां! मेरी बात बड़ी गंभीर है. मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि पशु- पक्षी हमारे बेहतरीन प्रेरणास्रोत हो सकते हैं . और हमसे ईमानदारी का पुट हो जाए तो फिर बात ही क्या ?
तो, आइये आपको अपने प्रेरणास्रोत ईमानदार बंदर जी से मुलाकात करवाऊ...आइये, मेरे साथ हमारे शहर के पुष्पलता वन में जहां बंदर जी ईमानदारी पूर्वक एक वृक्ष पर बैठे हुए हैं . दोस्तों, यह आम का वृक्ष है . देखिए ऊपर एक डाल पर दूर कहीं एक बंदर बैठा है . मगर बंदर तो बहुतेरे बैठे हैं . पेड़ पर चंहु और बंदर ही बंदर बैठे हैं .देखो ! निराश न हो... देखो! दूर एक मोटा तगड़ा नाटे कद का बंदर बैठा है न ! मैं अभी उसे बुलाता हूं -" नेताजी..."
-" नेताजी ." मैंने जोर की आवाज दी .
वृक्ष की ऊंची डाल पर आम्रकुंज में पके आम खाता और नीचे फेंकता एक बंदर मुस्कुराता नीचे उतर आया- "अरे आप हैं बहुत दिनों बाद दिखे, कहां थे . उन्होंने आत्मीयता से गले लगाते हुए कहा ।
' नेताजी ।' मैंने उदिग्नता से कहा- 'मैं आप से बड़ा प्रेरणास्रोत ढूंढ रहा था. मगर नहीं मिला .अंततः एक दिन आपके बारे में मित्रों को बताया तो सभी आपसे मिलने को उत्सुक हुए देखिए इन्हें भी ले आया हूं ."