चेहरे पर ओढ़ी खामोशी, आंखों का आकर्षण बरबस मुझे उस की ओर खींच ले गया था. उस से मिलने की चाह में एकएक पल बिताना मुश्किल हो रहा था. लेकिन यह कैसी बेबसी थी कि उस की आंखों का दर्द देख कर भी मैं सिर्फ महसूस करता रह गया, बेबस सा.
उस के व्यक्तित्व ने मुझे ऐसा प्रभावित कर रखा था कि घंटों तो क्या, अगर पूरे दिन भी इंतजार करना पड़ता तो भी मैं कुछ बुरा महसूस नहीं करता. एक अजीब रूमानी आकर्षण ने मुझे अपने पाश में ऐसा जकड़ लिया था कि मैं अपने खुद के अस्तित्व से भी उदासीन रहने लगा था. हर ‘क्यों’ का उत्तर अगर मिल जाता तो दुनिया ही रुक गई होती. पर पार्क की बैंच पर बैठ कर किसी की प्रतीक्षा करने का अनोखा आनंद तो वही जान सकता है जो ऐसे पलों से गुजरा हो.
पिछले जमाने की रहस्यमयी फिल्मों की नायिका सी यह लड़की मुझे शहर की एक सड़क पर दिखी थी. पता नहीं क्यों, पहली नजर में ही मैं उस के प्रति आकर्षित हो गया था और यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं कि मैं ने उस के बाद, उस रास्ते के अनगिनत चक्कर काटे थे. मन में पक्की उम्मीद थी कि एक न एक दिन तो वह फिर मिलेगी और ऐसा ही हुआ. एकदो बार फिर आमनासामना हुआ और पता नहीं कैसे, उसे भी यह एहसास हो गया कि मैं वहां उसी के लिए चक्कर काटा करता हूं. शायद इसीलिए उस ने, थोड़ी चोरी से, मेरी और देखना शुरू कर दिया था. बस, कहानी यहीं से शुरू हुई थी.