मौसम बहुत ही लुहवाना हो गया था. आसमान में घिर आए गहरे काले बादलों ने कुछ अंधेरा सा कर दिया था, लेकिन शाम के चार ही बजे थे, तेज बारिश के साथ जोरों की हवाएं और आंधी भी चल रही थी, पार्क में पेड़ झूमते लहराते अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे थे. यमन का मन हुआ कि कमरे के सामने की बालकनी में कुर्सी लगाकर मौसम का लुफ्त उठाया जाए लेकिन फिर उन्हें लगा कि यामिनी का कमजोर शरीर तेज हवा सहन नहीं कर पाएगा. यमन ने यामिनी की ओर देखा वह पलंग पर आँखें मूंदे लेटी थी. यमन ने यामिनी से पूछा- अदरक वाली चाय बनाऊँ, पियोगी. अदरक वाली चाय यामिनी को बहुत पसंद थी, उसने धीरे से आँखे खोली और मुस्कराई, ‘‘आप क्यों, रामू से कहिये न, वह बना देगा. वह धीरे-धीरे बस इतना भी कह पाई.

अरे, रामू से क्यूँ कहूँ, वह क्या मुझसे ज्यादा अच्छी चाय बनाता है, तुम्हारे लिए तो चाय मैं ही बनाऊँगा. कहकर यमन रसोई में चले गये जब वे वापस आये तो ट्रे में दो कप चाय के साथ कुछ बिस्कुट भी रख लाए, उन्होंने सहारा देकर यामिनी को उठाया और हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बिस्कुट आगे कर दिया.

नहीं, कुछ नहीं खाना, कहकर यामिनी ने बिस्कुट की प्लेट सरका दी...

‘बिस्कुट चाय में डुबाकर........ उनकी बात पूरी होने से पहले ही यामिनी ने सिर हिला कर मना कर दिया. यामिनी की हालत देखकर यमन का दिल भर आया, उसका खाना पीना लगभग न के बराबर हो गया था. आँखों के नीचे काले गड्ढे हो गए थे, वज़न एकदम कम हो गया था. वह इतनी कमजोर हो गयी थी कि उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. यमन खुद को विवश महसूस कर रहे थे, समय के आगे हारते चले जा रहे थे यमन.

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