इकलौती संतान 13 वर्षीय नीलिमा जिस भी चीज की मांग करती वह मातापिता को देनी पड़ती थी वरना नीलिमा पहले तो आसपास की चीजों को पटकने लगती थी और फिर बेहोश होने लगती. परेशान हो कर मातापिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर को पता नहीं चल पा रहा था कि वह बेहोश क्यों होती है, क्योंकि सारी जांचें करने पर भी कुछ नहीं निकला. फिर कुछ लोगों की सलाह पर मातापिता नीलिमा को मुंबई के 7 हिल्स हौस्पिटल के मनोरोग चिकित्सक डा. श्याम मिथिया के पास ले गए. पहले दिन तो उन्हें भी नीलिमा के बेहोश होने का कारण पता नहीं चल पाया, पर 1-2 दिन बाद पता चला कि उसे अगर किसी चीज के लिए मना करो तो वह बेहोश हो जाती है. लेकिन वह वास्तव में बेहोश नहीं होती, बल्कि घर वालों को डराने के लिए बेहोश होने का ड्रामा करती है ताकि उसे अपनी मनचाही चीज मिल जाए.
तब डाक्टर ने नीलिमा को बिहैवियर थेरैपी से 2 महीनों में ठीक किया. फिर मातापिता को सख्त हिदायत दी कि आइंदा यह बेहोश होने लगे तो कतई परवाह न करना. तब जा कर उस की यह आदत छूटी. 14 साल के उमेश को अगर कुछ करने को कहा जाता मसलन बिजली का बिल जमा करने, बाजार से कुछ लाने को तो वह कोई न कोई बहना बना देता. ऐसी समस्या करीबकरीब हर घर में देखने को मिल जाएगी. दरअसल, आज के युवा कोई जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वे अपने मातापिता की, औफिस की, समाज की जिम्मेदारियों आदि से खुद को दूर कर लेते हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि बचपन से ही उन में जिम्मेदारियां उठाने की आदत डाली जाए. डा. श्याम कहते हैं कि बच्चे को थोड़ा बड़े होते ही जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर देनी चाहिए. आजकल एकल परिवार और कम बच्चे होने की वजह से मातापिता अपने बच्चों को जरूरत से अधिक पैंपर करते हैं. जैसेकि अगर बच्चा कुछ मांगे, रोए तो मातापिता दुखी हो कर भी उस चीज को ला देते हैं.