भारत में यदि संतान के इच्छुक किसी दंपती को साल 2 साल में बच्चा नहीं होता, तो इस का जिम्मेदार केवल महिला को ठहराया जाता है, जबकि महिला को मां बनाने में नाकाम होना पुरुष की मर्दानगी पर सवाल होता है. पुरुष भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं और दोनों ही स्थितियों के स्पष्ट शारीरिक कारण हैं. पर अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

आज बच्चा पैदा करने में अपनी नाकामी की बात स्वीकार करने का साहस पुरुष भी दिखा रहे हैं. वे इस की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इलाज के लिए आगे आ रहे हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बच्चा पैदा करने की अक्षमता के लगभग एकतिहाई मामलों की जड़ पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी है, जबकि अन्य एकतिहाई के लिए महिलाओं की प्रजनन को जिम्मेदार माना जाता है. बाकी मामलों के कारण अभी ज्ञात नहीं हैं.

कारण

पुरुषों की प्रजनन अक्षमता के मुख्य कारण हैं- शुक्राणुओं की संख्या में कमी, उन की गति में कमी और टेस्टोस्टेरौन की कमी. शुक्राणुओं की संख्या में कमी से फर्टिलाइजेशन (निशेचन) की संभावना में बहुत कमी आती है, जबकि उन की गति धीमी पड़ने से शुक्राणु तेजी से तैर कर एग (अंडाणु) तक पहुंच कर उसे फर्टिलाइज करने में नाकाम रहता है. टेस्टोस्टेरौन एक हारमोन है, जिस की शुक्राणु पैदा करने में बड़ी भूमिका होती है. समस्या के ये कारण बदलते रहते हैं और इन में 1 या अधिक की मौजूदगी से पुरुष की प्रजनन क्षमता छिन सकती है.

शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे आनुवंशिक कारण, टेस्टिक्युलर (अंडकोश) की समस्या, क्रोनिक प्रौस्टेट का संक्रमण, स्क्रोटम की नसों का फूला होना और अंडकोश का सही से नीचे नहीं आना.

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