मैं एक साधारण परिवार से हूं. मेरा अफेयर शहर के नामीगिरामी वकील के बेटे से था. मैं ने उस से कई बार शादी करने की बात की, मगर वह हमेशा कम उम्र का होने का बहाना बना कर टाल जाता और कहता कि शादी से पहले शारीरिक सुख जरूरी होता है. बिना शारीरिक मिलन के प्यार परिपक्व नहीं होता. वह मुझे हमेशा रात में किसी होटल में मिलने को कहता, लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया.
मेरी शादी कहीं और पक्की हो गई तो मेरी सगाई के बाद उस के एक दिन मुझे मिलने के लिए पार्क में बुलाया. जब मैं उस से मिलने पहुंची तो उस ने मेरे आते ही मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया. इत्तफाक से उसी समय अचानक मेरे होने वाले पति अपने दोस्तों के साथ पार्क में आए और मुझे इस अवस्था में देख लिया, तो मेरा डर के मारे बुरा हाल हो गया. मैं धड़कते दिल से उलटे पांव लौट गई.
4-5 दिन तक मैं संभल न सकी. आखिरकार छठे दिन मैं ने उन को फोन किया. वे आशा के विपरीत बहुत अच्छे ढंग से बात करते रहे और मेरी पसंदनापसंद के बारे में पूछते रहे. उन का सकारात्मक रुख देख कर मुझे काफी तसल्ली हुई.
शादी के दिन फेरे होने के बाद जब मैं पति के पास पहुंची तो उन्होंने मुसकरा कर मेरा स्वागत किया. मैं ने अपनी पैरवी करते हुए कहा, ‘‘उस दिन पार्क में जो लड़का था मेरा दोस्त था..’’ उस से आगे मैं कुछ नहीं कह सकी.
पति बोले, ‘‘चलो अच्छा है कि मेरी खूबसूरत बीवी के अच्छे दोस्त भी हैं. पर याद रखना दोस्ती ऐसे व्यक्ति से करो, जो निस्स्वार्थ हो और दोस्ती के बदले कोई मांग न रखे. त्याग और अर्पण दोस्ती के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’