सदियों से हमारे समाज में महिलाओं के साथ शोषण और अन्याय की घटनाएं होती रही हैं. ज्यादातर महिलाएं इन्हें अपनी नियति मान कर सहती हैं पर कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जिन्होंने पूरी हिम्मत से अन्याय का विरोध किया और आवाज उठाई.
ऐसी महिलाओं ने ही अपराधियों के हौसले पस्त किए और उन्हें करतूतों की सजा दिलाई. इन्होंने पूरी नारी जाति के लिए उदाहरण पेश किया है:
जो डरी नहीं वह गौरी थी: 5 सितंबर 2017 को बंगलुरु में कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक पत्रिका लंकेश की संपादक और क्रांतिकारी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई.
गौरी की हत्या पर पूरे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई. दिल्ली में पत्रकारों ने प्रैस क्लब में जमा हो कर इस घटना की निंदा की.
गौरी दक्षिणपंथियों की कड़ी आलोचक थीं. सत्ता विरोधी स्वर का प्रतिनिधित्व करती थीं. सरकार से त्रस्त लोगों की पीड़ा उन की आवाज बनती थीं.
हत्या होने से पहले लिखे गए आखिरी संपादकीय में गौरी ने हिंदुत्त्ववादी संगठनों एवं संघ की झूठे समाचार बनाने तथा लोगों में फैलाने के लिए आलोचना की थी. उन्होंने लिखा था कि इस हफ्ते के अंक में मेरे मित्र डा. वासु ने इंडिया में फेक न्यूज बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है. झूठ के कारखानों से जो नुकसान हो रहा है, उस के बारे में मैं अपनी संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी.
अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी. उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया. झूठ यह कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी वहीं गणेश प्रतिमा स्थापित करनी होगी. इस के पहले क्व10 लाख जमा करना होगा. दूसरे धर्म के लोग जहां रहते हैं उन रास्तों से विसर्जन के लिए नहीं ले जा सकते, पटाखे नहीं छोड़ सकते वगैरा.