विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां... बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.
‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं... क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.
‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.
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पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.