‘‘तारेश. यह क्या नाम रखा है मां तुम ने मेरा? एक तो नाम ऐसा और ऊपर से सर नेम का पुछल्ला तिवाड़ी... पता है स्कूल में सब मुझे कैसे चिढ़ाते हैं?’’ तारेश ने स्कूल बैग को सोफे पर पटकते हुए शिकायत की.
‘‘क्या कहते हैं?’’
‘‘तारू तिवाड़ी...खोल दे किवाड़ी...’’ तारेश गुस्से में बोला.
मां मुसकरा दीं. बोलीं, ‘‘तुम्हारा यह नाम तुम्हारी दादी ने रखा था, क्योंकि जब तुम पैदा हुए थे उस वक्त भोर होने वाली थी और आसमान में सिर्फ भोर का तारा ही दिखाई दे रहा था.’’
‘‘मगर नाम तो मेरा है न और स्कूल भी मुझे ही जाना पड़ता है दादी को नहीं. मुझे यह नाम बिलकुल पसंद नहीं... आप मेरा नाम बदल दो बस,’’ तारेश जैसे जिद पर अड़ा था.
‘‘तारेश यानी तारों का राजा यानी चांद... तुम तारेश हो तभी तो चांद सी दुलहन आएगी...’’ मां ने प्यार से समझाते हुए कहा.
‘‘नहीं चाहिए मुझे चांद सी दुलहन... मुझे तो तेज धूप और रोशनी वाला सूरज पसंद है,’’ तारेश गुस्से में चीखा. मगर तब तारेश खुद भी कहां जानता था कि उसे सूरज क्यों पसंद है.
‘‘बधाई हो, बेटी हुई है,’’ नर्स ने आ कर कहा तो तारेश जैसे सपने से जागा.
‘‘क्या मैं उसे देख सकता हूं, उसे छू सकता हूं?’’
‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ तारेश का उतावलापन देख कर नर्स मुसकरा दी.
‘‘नर्ममुलायम... एकदम रुई के फाहे सी... इतनी छोटी कि उस की एक हथेली में ही समा गई. बंद आंखों से भी मानो उसे ही देख रही हो,’’ तारेश ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा.
‘‘तुम्हारी यह निशानी बिलकुल तुम पर गई है सोमल...’’ तारेश बुदबुदाया. फिर उस ने हौले से नवजात को चूमा और उस की सैरोगेट मां की बगल में लिटा दिया.