फंदों की दुनिया भी बड़ी अजीब होती है. अगर हम गौर से देखें तो इस संसार का हर प्राणी किसी न किसी फंदे के शिकंजे में फंसा हुआ नजर आएगा. कोई अपनी बीवी के फंदों से दुखी है, तो कोई प्रेमिका के प्यार में गरदन फंसा कर कसमसा रहा है, जो न छोड़ती है न ही शादी कर रही है. इतना ही नहीं, कोई पैसे की मारामारी में फंसा है, तो कोई दोस्त की गद्दारी में. कोई बौस की चमचागीरी में, तो कोई नेता या पुलिस की दादागीरी में.
फंदों का एक बहुत बड़ा अखाड़ा हमारी राजनीति को भी कहा जा सकता है. गरदन तक जुल्म की दुनिया में डूबे लोगों को सालों के इंतजार के बाद कानून गले में फंदा पहनाने का हुक्म सुना पाता है. पर वोट की शतरंज बिछाए नेताओं को ऐसे लोगों से सहानुभूति हो जाती है. वे फांसी के फंदे में भी फंदा फंसा अपनी वोट की राजनीति कर जाते हैं यानी उन्हें छुड़ा लेते हैं.
इस प्रसंग में एक और किस्म के प्राणियों का यदि जिक्र न किया तो यह चर्चा बेजान नजर आएगी. वे हैं हमारी हाउस मेकर बहनें, जिन्हें सर्दियों के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है. सितंबर में जरा सर्द हवाएं चलीं नहीं कि उन का ऊन, सलाइयों और फंदों का सफर शुरू हो जाता है. इस में पहले पिछले साल के आधेअधूरे छोड़े स्वैटरों पर काम शुरू होता है, फिर नए ऊनों के लिए बाजार का रुख किया जाता है. जल्दीजल्दी रसोई और घर का काम निबटाया जाता है और वे ले कर बैठ जाती हैं ऊन और सलाइयां. कभी घरों की छतों पर महफिल जमती है, तो कभी किसी की धूप वाली बालकनी में.