बेटा हमारे पास इज्जत के अलावा कुछ नही है तुझे बाहर इंजीनियरिंग कराने का सपना तेरे नानू का था, उम्मीद करती हूं तू उनके विश्वास पर खरी उतरेगी, खूब पढ़ना, लेकिन शहर की हवा में अपने संस्कार न भूलना.
तुम्हारी मां.
सोनी ने ये चिठ्ठी अपने सिरहाने पड़ी एक डायरी में संभाल के रखी थी, हर रोज एक बार पढ़ती और उसके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता जो उसे कोई भी गलत कदम उठाने से रोकता. एक वो समय था एक अब समय है इस शहर ने उसके अंदर कितना कुछ बदल दिया पढ़ाई के बाद जैसे ही नौकरी मिली उसके अंदर एकाएक ये भावना घर कर गई कि अब वो स्वतंत्र है किसी से सलाह मशवरे की जरूरत नहीं उसे, वो तो खुद इतनी सक्षम है कि अपना फैसला खुद ले सके. लेकिन जो भी वो कर रही है क्या वो सही है लेकिन गलत भी तो नही, एक उम्र है जब इंसान को किसी साथी की जरूरत होती है और वो साथी जब पति होता है तो स्वतंत्रता तो जैसे खो जाती है ऐसे में कोई क्या करें, लेकिन कैसे समझाएगी मां को नानी-नानू को जो इतने सालों से इस विश्वास और धैर्य के साथ गांव मे उसका इंतजार कर रहे है कि वो आएगी और धूम-धाम से अपने पसंद के लड़के से उसकी शादी करवाएंगे.
तभी फोन की घंटी बजी, सोनी की मां का फोन था, स्टेशन पहुंच कर बस पकड़ ली थी, पूछ रही थी कहां उतरना है. सोनी की मां अपनी बेटी के घर को आश्चर्य से देखते हुए पूछी तुम लोग इतने बड़े घर मे रहती हो जानती तो तेरे नानू को भी ले आती खुश हो जाते देखके ये सब, तेरी सहेली मनीषा कहां है?