प्रेम त्रिकोण पर कई फिल्में बन चुकी हैं. ‘मनमर्जियां’ भी उन्ही में से एक है. कहानी के स्तर पर दूसरी फिल्मों से यह कुछ ज्यादा भिन्न नहीं है. मगर प्रस्तुतिकरण के स्तर पर ‘मनमर्जियां’ काफी अलग तरह की फिल्म है. इसमें प्यार व रिश्तों की जटिलताओं के साथ प्यार के पैशन व जिंदगी भर की सुरक्षा के बीच लड़की क्या चुनती है, इसका भी चित्रण है. पर फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप हैं, तो कुछ तो डार्क हिस्सा भी रहेगा.
फिल्म की कहानी अमृतसर में अपने चाचा, चाची और दादा जी के साथ रह रही रूमी (तापसी पन्नू) और विक्की संधू उर्फ डी जे संधू (विक्की कौशल) की प्रेम कहानी से शुरू होती है. दोनों इस कदर गले तक प्यार में डूबे हुए हैं, मिलते ही एक दूसरे में समा जाना चाहते हैं. इनका प्यार शारीरिक सीमाओं को पार कर चुका है. विक्की संधू समाज की परवाह किए बगैर दूसरों की घरों की छतों पर से कूदता फांदता रूमी के शयनकक्ष में किसी भी समय पहुंच जाता है. रूमी किचन में हो या कहीं और वह भी संधू की आहट पाते ही अपने शयनकक्ष में पहुंच जाती है. और फिर शारीरिक प्यार होता है. संतुष्ट होते ही संधू नौ दो ग्यारह हो जाता है. पूरे अमृतसर में इनके प्यार के चर्चे हैं. मगर रूमी घर के सदस्यों को यह कहकर भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करती रहती है कि यदि उसके माता पिता जिंदा होते तो उसके साथ ऐसा नहीं होता.
पर जब रूमी की चाची व दादाजी रूमी और संधू को शयनकक्ष में रंगे हाथों पकड़ते हैं, तो रूमी के घर वाले रूमी पर शादी के लिए दबाव बनाते हैं. रूमी के परिवार के लोग रूमी की शादी, संधू से भी करने को तैयार हैं, बशर्ते संधू अपने माता पिता के साथ रूमी का हाथ मांगने आएं. रूमी, संधू से कहती है कि वह अपने पिता के साथ उसके घर शादी की बात करने आ जाए. मगर आवारा लौंडा विक्की संधू कब आने लगा. वह तो शादी की स्थिति के लिए अभी परिपक्व ही नहीं हुआ है. उसके लिए तो रूमी के संग प्यार ही काम है.