दिल्ली सरकार अब दिल्ली में 1 लाख से ज्यादा क्लोज्ड सर्किट टीवी कैमरे लगवाने जा रही है ताकि शहर के नागरिकों को सुरक्षा का एहसास हो सके कि कोई देख रहा है. सीसीटीवी आज ऐसी आधुनिक तकनीक बन गया है जिस में कोई भी कहीं भी देखा ही नहीं, पहचाना भी जा सकता है.
आजकल ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार हैं, जिन से सीसीटीवी कैमरे में आए चेहरों में कौन किस का है यह लाखों आधार, पासपोर्ट, पैन, राशनकार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस में लगे फोटोग्राफों से मेल खा कर चेहरे का अतापता कर सकते हैं. चीन के एक शहर ने एक अमेरिकी पत्रकार को कहा कि वह शहर में कहीं भी खो जाए उसे
5 मिनट में ढूंढ़ लिया जाएगा. पत्रकार ने भरे बाजारों में छिपने की कोशिश की पर 5 मिनट में उस पत्रकार को सीसीटीवी और फेस रिकोग्निशन तकनीक से पुलिस ने पकड़ लिया. अरविंद केजरीवाल के सीसीटीवी इतना काम कर सकेंगे यह तो नहीं कह सकते पर इतना पक्का है इन से जनता को राहत जरूर मिलेगी. सुनसान होते
रास्तों के कोनों या उदासीन होते पड़ोसियों के कारण जो डर अब सब को लगने लगा था, अब वह कम हो जाएगा.
सीसीटीवी कैमरों से सुनसान पड़े घरों को राहत मिलेगी और वृद्धों को मौका मिलेगा कि वे अपना संदेश दे सकें. अकेली रह रही औरतों को भी सुरक्षा का एहसास होगा कि यदि कोई उन के घर में घुसने की कोशिश करेगा तो पकड़ा जाएगा. अवैध निर्माण पर भी अंकुश लगेगा. सड़कों पर अतिक्रमण भी रिकौर्ड हो सकता है.
एक तरह से यह निगरानी अच्छी है पर इस की चाबी किस के पास होगी? इस में निजता का सवाल भी खड़ा होगा. कोई कैमरा किसी के बैडरूम में झांक रहा है यह पता ही नहीं चलेगा. आजकल जो कैमरे आ रहे हैं उन्हें 360 डिग्री घुमाया जा सकता है और वह भी रिमोट से. सड़क देखतेदेखते किस जोड़े की रील बन जाए पता नहीं.