हर लड़की की तरह चूड़ियां झुमके पहनने और बिंदी लगाने का शौक राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान गीता फोगट को भी है. मगर यह शौक पूरा करने के लिए उन्हें बचपन से काफी संघर्ष करना पड़ा.
इस संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब बचपन में ही उन के पिता महावीर फोगट ने उन्हें अखाड़े में पहलवानी के लिए उतार दिया. मगर आज उसी संघर्ष का नतीजा है कि गीता पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर रही हैं, जिस का पूरा श्रेय गीता अपने पिता को देती हैं. बात-चीत के दौरान उन्होंने अपने पिता से जुड़ी कई बातें बताईं:
क्या बचपन से ही आप को अपने पिता से इतना जुड़ाव था?
माता-पिता से तो हर बच्चे को जुड़ाव होता है. हम बहनें भी मम्मी-पापा दोनों से ही भावनात्मक रूप से काफी जुड़ी थीं. मगर जब पापा ने मुझे और बबीता पर पहलवानी सीखने का दबाव बनाया, तो वे हमें दुश्मन जैसे लगने लगे. पहलवानी की वजह से हमारा रहनसहन आम लड़कियों से अलग हो गया था. हमारी सारी सहेलियां हम से दूर रहने लगी थीं. सुबह-शाम अखाड़ा और पापा यही हमारी जिंदगी थी. पापा हमें टीवी तक नहीं देखने देते थे. हमें उन की आहट से भी डर लगता था. ऐसा लगने लगा था कि हमारा बचपन पहलवानी करने में खो सा गया है. मगर तब यह नहीं पता था कि उन की बदौलत हमें एक दिन इतनी शोहरत मिलेगी.
आप को अपने पिता की कौन सी बात सब से अधिक अच्छी लगती है?
हरियाणा में महिलाओं को घूंघट से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती. अपनी मां को भी हम ने हमेशा घूंघट में ही देखा. ऐसे माहौल में भी पापा ने हमारी परवरिश इस तरह की कि हमें कभी लगा ही नहीं कि हम लड़कियां हैं और हमें ऐसे नहीं रहना चाहिए. गांव में सभी ने पापा का विरोध किया. यह तक कह दिया कि पहलवानी से लड़कियों का शरीर बिगड़ रहा है. कौन करेगा इन से शादी? मगर पापा के कदम कभी पीछे नहीं हटे. पापा की तरह मैं भी कभी किसी भी परिस्थिति में घबराती नहीं हूं. पापा ने यह साबित कर दिया कि अलग सोच को नई दिशा देने से ही समाज में बदलाव संभव है.