48 वर्षीया निर्मला जोगदंड से हमारी मुलाकात जोगेश्वरी (मुंबई) स्थित उन के फ्लैट में हुई. लैविश फर्नीचर से लैस उन का घर बहुत ही खूबसूरत नजर आ रहा था. नीले सूट के साथ काले रंग का जैकेट पहने निर्मला भी सुंदर लग रही थीं. दया, करुणा और प्रेम के भाव उन के चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे. पैसों का घमंड और समाज सेवा करने का गर्व उन से कोसों दूर था. पूरे साक्षात्कार में मधुर बोली, दया भाव के साथ निर्मला अपने शुद्ध विचार साझा करती दिखीं. आइए, उन के बारे में और विस्तार से जानें.
शुरुआत से थी कुछ करने की इच्छा
एमए, बीएड निर्मला कहती हैं कि मैं ने अपने बचपन में गरीबी से ले कर अकाल की स्थिति भी देखी है, इसलिए मेरी इच्छा थी कि मैं गरीबों के लिए कुछ करूं. उन की स्थिति को सुधारने के लिए शिक्षा से बेहतर विकल्प और कोई नहीं. इसलिए मैं ने आदिवासी बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी ली. जिन के लिए प्राइवेट स्कूल की भारी फीस भरना नामुमकिन था और पालिका स्कूल में जाना न जाने के बराबर, क्योंकि वहां शिक्षक और शिक्षा का घोर अभाव था. इसलिए मैं रोजाना अपने घर से कुछ किलोमीटर दूर (आरे कालोनी) आदिवासी गांव में जा कर बच्चों को पढ़ाने लगी. शुरुआत में कुछ 5-6 बच्चे ही आते थे, लेकिन आज उनकी संख्या 30-35 हो गई है. बालवाड़ी से लेकर दसवीं तक के बच्चे पढ़ने आते हैं. मैं ने काउंसलिंग में डिप्लोमा भी किया है, इसलिए मैं इन आदिवासी बच्चों के साथ उन के मातापिता की भी काउंसलिंग करती हूं ताकि उन्हें शिक्षा की अहमियत बता सकूं.