सामने वाला कान काटने में चाहे कितना ही माहिर क्यों न हो, लेकिन उन्हें भी चूना लगाने में एक सैकंड लगता है. आप बस, एक बार दुकान में घुस जाएं, गारंटी है कि वहां से खाली हाथ नहीं लौटेंगे. इतना ही नहीं, मोबाइल सैट के साथ नया नंबर भी आप को खरीदना पड़ेगा और आप की जेब खाली हो जाएगी. मगर कोई बात नहीं, क्योंकि आप संतुष्ट हैं. 1,000-1,200 में सैट और कनैक्शन मिल जाए, इस से बड़ी समझदारी भला क्या होगी और फिर बात ही तो करनी है. मांबाप से आप दूर रहते हैं. एसटीडी कौल्स में काफी पैसे खर्च हो जाते हैं. अच्छा है, अब आप खूब बातें करेंगे. मगर सारी समझदारी पल भर में निकल जाती है, जब अगले महीने बिल आता है. एक ही कनैक्शन वाले नंबरों में तो एसटीडी कौल का रेट कम था, फिर कैसे इतना बिल आ गया?
प्रीपेड व पोस्टपेड सिम खरीदते समय ग्राहक को कई तरीके से भरमाया जाता है. प्लान की जानकारी देते समय सिर्फ उस के फायदे गिनाए जाते हैं. बाकी सब जानने के लिए वह घुमाता रहे कस्टमर केयर का नंबर. चूंकि यह नंबर टोल फ्री होता है तो आप के पैसे भी नहीं लगेंगे, लेकिन इस के लिए आप को घंटे भर पहले से नंबर घुमाना होगा. नंबर मिल जाए तो आप को हिंदी, अंगरेजी में सुनने व बिल वगैरा की जानकारी के लिए अलगअलग नंबर दबाने होंगे. फोन बजता रहता है लेकिन औपरेटर फोन नहीं उठाते. यह सब आप को झेलना पड़ेगा.
रिलायंस टू रिलायंस, वोडाफोन टू वोडाफोन, टाटा टू टाटा, आइडिया टू आइडिया या एयरटेल टू एयरटेल फ्री टौकटाइम का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी समय फोन करें तो बिल नहीं आएगा. भैया, बात करने का भी वक्त होता है. एक निश्चित समय पर ही आप बात करेंगे तभी आप को इस का फायदा मिलेगा. लेकिन यह तो कनैक्शन लेते समय आप को नहीं बताया गया था.