यौन शोषण के खिलाफ मी टू अभियान जोर पकड़ रहा है. बौलीवुड से ले कर मीडिया और राजनीति की दुनिया से जुड़े दिग्गजों के नाम सामने आ रहे हैं. एक के बाद एक नामचीन लोगों की इज्जत की धज्जियां उड़ रही हैं, उस से राजनीति, मीडिया, फिल्म, साहित्य जगत में एक भय का माहौल बना हुआ है.
मी टू अभियान से लंपट पुरुषों की दुनिया थर्रा उठी है. पता नहीं कब, कौन महिला किस के खिलाफ आरोप लगा कर उसे बेनकाब कर दे, जिस तरह से एक के बाद एक रोज खुलासे हो रहे हैं उस से तो लग रहा है कि यह तो अभी बस शुरुआत है. अभी और आवाजें उठेंगी. कइयों की लंगोटियां उतरेंगी.
इस अभियान से सदियों पुरानी बेडि़यां टूट रही हैं. सामाजिक वर्जनाओं को चुनौतियां मिल रही हैं. यह अच्छी बात है कि सामाजिक व्यवस्था में पीडि़त रही महिलाओं में स्वतंत्रता, बराबरी के लिए जागृति उत्पन्न हुई है.
यौन उत्पीड़न पर हमेशा चुप रहने वाली महिलाएं मी टू अभियान के तहत अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को खुल कर दुनिया को बता रही हैं.
10-20 वर्षों पहले के मामले भी सामने आ रहे हैं तो समझना चाहिए कि इतना वक्त बीत जाने के बावजूद महिलाओं को यौन उत्पीड़न के जख्म सता रहे हैं. ये जख्म इतने गहरे हैं कि आखिर पीडि़ताओं को साहस करना पड़ा. यह हिम्मत उन में पहले नहीं थी.
दरअसल, यौन उत्पीड़न की शिकार अधिकांश महिलाएं उस वक्त कमजोर थीं. यौन उत्पीड़न की एक विशेषता रही है कि वह ताकतवर द्वारा कमजोर के साथ किया जाता है. इस में कमजोर किसी न किसी वजह से चुप रहता है.