‘‘रजत की बेरुखी अनन्या को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. इसी बीच उसे हैदराबाद शिफ्ट होने की बात पता चली...’’
रजत के घर से जाते ही अनन्या चुपचाप बैड पर आ कर लेट गई. 5 दिन के लिए औफिस के काम से भीमताल जा रहा था रजत. पर जाते हुए रोज की तरह वही रूखा सा बाय. कितनी याद आई थी उसे रजत की जब वह पिछले महीने 1 सप्ताह के लिए गोवा गया था.
वह बेसब्री से रजत का इंतजार करते हुए उस के दिल में जगह बनाने के तरीके ढूंढ़ती रहती थी. तभी तो उस ने इंटरनैट पर वीडियो देख कर खाने की कुछ चीजें बनाना भी सीख लिया था. जिस दिन रजत लौटा था, उस दिन कुक से खाना न बनवा कर अपने हाथों से नर्गिसी कोफ्ते और लच्छेदार परांठे बनाए थे रजत के लिए. खाना खाने के बाद हलके से मुसकरा कर जब रजत ने थैंक्स बोला था, तो गदगद हो गई थी अनन्या.
आज उसे पूरी उम्मीद थी कि रजत खूब हिदायतें दे कर जाएगा, जैसेकि ज्यादा याद मत करना... बाई से अपने लिए अच्छा सा खाना बनवा कर खा लिया करना... रात में देर तक जागती मत रहना वगैरहवगैरह. पर रजत तो हमेशा की तरह सिर्फ बाय बोल टैक्सी में बैठ गया और मुड़ कर भी नहीं देखा.
सब सोचते हुए अनन्या को नींद आ गई. उस की नींद मोबाइल की रिंग बजने से टूटी.
‘‘अभीअभी लैंड हुई है फ्लाइट,’’ रजत का फोन था.
‘‘ओके... अभी तो कुछ देर लगेगी न एअरपोर्ट से बाहर निकलने में? फिर औफिस के गैस्ट हाउस तक पहुंचने में 1 घंटा और लगेगा... आप ने औफिस में इन्फौर्म कर के गाड़ी तो मंगवा ली थी न? रात को टैक्सी से जाना रिस्की होता है... ध्यान रखना अपना...’’