जल्द ही सरकार कचरे पर भी कर लगाने जा रही है. तय है कि यह समाचार पढ़ कर कई लोग चौंके होंगे. वजह, कर चोरी की लत विशेषज्ञता नहीं, बल्कि कर का गिरता स्तर है. सरकार देती एक हाथ से है पर लेती हजार हाथों से है. कर लेते ये हजारों हाथ अर्थव्यवस्था की हड्डियां हैं जिन की मजबूती पैसे रूपी कैल्शियम से होती है.
मैं भी सैकड़ों तरह के कर देता हूं. आमदनी हो न हो, कर देना जरूरी है. यह गुजाराभत्ता कानून से मेल खाता है कि पति कमाए न कमाए, पत्नी को जिंदा रखने के लिए पैसा देना होगा.
प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और मिश्रित के अलावा जाने कितने तरह के टैक्स दे कर मैं तकरीबन कंगाल हो चला हूं मगर शरीर चलाए रखने के लिए आयकर, विक्रयकर, सेवाकर, आबकारीकर, वाणिज्यकर, मनोरंजनकर, संपत्तिकर, शिक्षा कर जैसे दर्जनों कर जानेअनजाने बिना नागा देता रहता हूं, जिस से सरकार चलती रहे, देश चलता रहे.
अपने मरियल से शरीर को चलाने के लिए दो वक्त की रोटी काफी होती है मगर मेरे शरीर का हर हिस्सा करदाता है. तेल खरीदता हूं तो सर के बाल कर देते हैं, शेविंग क्रीम लूं तो चेहरा करदाता हो जाता है. कहने की जरूरत नहीं कि आंख, कान, नाक, हाथ, पैर, पीठ, पेट सब टैक्सपेयी हैं. मैं तो सोते वक्त भी टैक्स देता सोऊंगा. यह बात फ्यूचर परफेक्ट कंटीन्यूस टेंस की न हो कर जीतीजागती हकीकत है. सुबह उठते ही मैं टैक्स देना शुरू कर देता हूं तो यह सिलसिला देर रात तक चलता है.
पैट्रोल, मोबाइल, पैन, कागज और पानी समेत मैं टैक्सी पर भी टैक्स देता हूं. हिसाबकिताब कभीकभी लगाता हूं तो चकरा जाता हूं कि मैं टैक्स पर भी टैक्स देता हूं और आमदनी से ज्यादा देता हूं. बापदादों की छोड़ी जमीनजायदाद इस तरह सरकार के खाते में टुकडे़टुकड़े हो कर समा रही है. इनसाफ चाहिए तो टैक्स, इलाज करवाना हो तो टैक्स भरो, श्मशान तक में टैक्स का मीटर घूमता रहता है. आदमी का घूमना बंद हो जाता है पर टैक्स का पहिया चलता रहता है. अपने देश में फख्र की बात है कि भ्रूण भी कर देता है और आत्मा भी करदाता होती है.