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विचारों के भंवर में डूबतेउतराते अमन की पलकें भीग गईं. उस की जिंदगी को तो झंझावातों ने घेर रखा था. शुभि, उस की प्यारी सी बेटी...उस के दिल का टुकड़ा जिसे वह बेइंतहा प्यार करता था, स्याह अंधियारों में भटक रही थी और वह हर संभव कोशिश कर के भी उसे उजाले की ओर नहीं खींच पा रहा था.

रोज की तरह आज सुबह वह औफिस गया था. अभी वह अपनी टेबल पर बैठा जरूरी काम निबटा रहा था कि उस के पड़ोसी राजीव का फोन आ गया, ‘अमनजी, आप की बेटी शुभि की तबीयत अचानक खराब हो गई है. आप औफिस से सीधे सिटी अस्पताल पहुंचिए. हम शुभि को ले कर वहीं पहुंच रहे हैं.’

काल रिसीव करते समय उस ने मोबाइल कस कर न पकड़ा होता तो वह उस के हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया होता. उस का दिमाग एकाएक सुन्न हो गया था.

किसी से बिना कुछ कहेसुने वह दौड़ता हुआ औफिस से बाहर आया और कार स्टार्ट कर फुल स्पीड पर दौड़ा दी. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि रास्ते में कहीं लालबत्ती नहीं मिली. मिलती तो भी वह सारे नियमकायदों को तोड़ता हुआ निकल जाता. इस वक्त वह जिस मनोस्थिति में था उस में जैसे भी हो मौत से संघर्ष करती शुभि के करीब जल्दी से जल्दी पहुंचने के अलावा कोई विकल्प नहीं था उस के पास.

सिटी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड के बाहर कालोनी में रहने वाले अमन के शुभचिंतकों की खासी भीड़ जमा थी. उसे देखते ही राजीव लपक कर उस के पास आ कर बोला, ‘‘हम ठीक वक्त पर यहां पहुंच गए थे. डाक्टरों ने उपचार शुरू कर दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

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