रितु गुप्ता
मां, आई, अम्मा ताई, इन्हीं शब्दों में सारी दुनिया समाई,
कोई जुमले नहीं सार है संसार का, जिसने जन्म दे ये कायनात बनाई...
मेरा मां के साथ रिश्ता एक सहेली का है उन्होंने हर पल प्रेरणा दी, मुझको साहस दिया आगे बढ़ने का, कि कुछ कर गुजरना है. उम्र की कोई सीमा नहीं होती, जब मेरे बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में व्यस्त हो गए तो उन्होंने 71 साल की होने पर मुझे प्रेरणा दी कि आगे बढ़ते रहना ही जिंदगी है उन्होंने कहा कि अपने शौक को जिंदा रखो. शौक तुम्हें जिंदा रखेगा. बस यहीं से शुरू हो गई मेरी जिंदगी में आगे बढ़ने की लगन. मेरे शौक परवान चढ़े. मुझे गायकी, नृत्य, मंच संचालन, फिल्मों में काम करने का शौक और लेखन को नया आयाम मिला.
उन्होंने बचपन में मुझे एक बात सिखाई थी कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा. यह बात मैंने अपने दिल में बिठा ली और अपने हुनर को सबके सामने लाई क्योंकि बचपन में मैं बहुत शर्मीली थी. एक झिझक रहती थी कि सबके सामने कैसे अपने हुनर को पेश करूं, जब भी मुझे उनकी कही यह बात याद आती है मेरे अंदर ऊर्जा का संचार हो जाता है. आज मैं इस मुकाम पर हूं कि मैं खुद दूसरों के लिए प्रेरणा बनी. धन्यवाद शब्द बहुत छोटा प्रतीत होता है मां आपके लिए बस चरण वंदन है.
आपकी अपनी बेटी
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विभा शुक्ला, (लखनऊ)
'मां' शब्द में एक बच्चे की सारी दुनिया समाई रहती है. आज जब मां पर कहानी लिखने का अवसर आया तो ऐसा लगा जैसे बचपन में वापस जाने का सुअवसर हाथ लग गया. आज मेरी मम्मी तो नहीं है पर वो सारी बातें, वो सारी रातें जो मैंने उनके सानिध्य में बिताई हैं, मीठी यादें बनकर मेरे अस्तित्व में समा गई.