विश्व हिंदू परिषद संगठन अकसर हिंदू राष्ट्र की बात करता रहता है और इसीलिए मुसलिमों व ईसाइयों को वापस हिंदू बनाने का सुझाव देता है. देश के 16-17% मुसलिम व ईसाई (पाकिस्तान व बंगलादेश में रह गए मुसलिमों के अतिरिक्त) कैसे घर वापसी करेंगे और क्यों करेंगे, यह विश्व हिंदू परिषद संगठन न बताता है और न असल में जानता है. उसे यह जानने की जरूरत भी नहीं है कि आखिर इस भारतीय उपमहाद्वीप में इतने मुसलिम आ कहां से गए और आखिर मुसलिम राजाओं ने सभी को मुसलमान क्यों न बना लिया.
विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों की नजर में मुसलिम व ईसाई नहीं हैं, केवल हिंदू हैं. वे हिंदुओं को भड़का कर, उन्हें इस घर वापसी की मुहिम के लिए चंदा देने के लिए उकसाते रहते हैं ताकि उन के नेताओं, महंतों, संतों, पंडों का हलवापूरी सुरक्षित रहे.
जो अंधविश्वास, पोंगापंथी मुसलिमों व ईसाइयों में है वही हिंदुओं में भी है, तो कोई क्यों हिंदू बनेगा? हिंदू समाज कोई बहुत उदार, वैज्ञानिक और तार्किक तो है नहीं. जिस तरह के बेमतलब के रीतिरिवाज हिंदुओं में हैं वैसे ही दूसरों में भी हैं. अल्पसंख्यक होने का भी कोई नुकसान नहीं, क्योंकि हिंदुओं में हरकोई एक तरह से अल्पसंख्यक है.
हिंदुओं में ब्राह्मण अपनी जगह अल्पसंख्यक है. रोटीबेटी के संबंध एक ही जाति में बनते हैं यह आज किट्टी पार्टी तक में देखा जा सकता है. विवाहों में अकसर एक ही जाति के लोगों का जमघट होता है. दोस्ती भी जाति देख कर होती है. व्यवसाय, नौकरी भले जाति को भुला कर कर लें पर मन में अल्पसंख्यक भाव तो रहता ही है.