लेखक- सिद्धार्थ जैन
अपनी सहेली के विवाह समारोह में भाग लेने के बाद दीप्ति आलोकजी के साथ रात को 11 बजे वापस लौटी. जिस घर में वह पेइंग गेस्ट की तरह रहती थी उस के गेट के सामने अपने मातापिता को खड़े देख वह जोर से चौंक पड़ी क्योंकि वे दोनों बिना किसी पूर्व सूचना के कानपुर से दिल्ली आए थे.
‘‘मम्मी, पापा, आप दोनों ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’ कार से उतर कर बहुत खुश नजर आ रही दीप्ति अपनी मां गायत्री के गले लग गई.
‘‘हम ने सोचा इस बार अचानक पहुंच कर देखा जाए कि यहां तुम अकेली किस हाल में रह रही हो,’’ अपने पिता उमाकांत की आवाज में नाराजगी और रूखेपन के भावों को पढ़ दीप्ति मन ही मन बेचैन हो उठी.
‘‘मैं बहुत मजे में हूं, पापा,’’ उन की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए दीप्ति उमाकांत के भी गले लग गई.
आलोकजी इन दोनों से पहली बार मिल रहे थे. उन्होंने कार से बाहर आ कर अपना परिचय खुद ही दिया.
‘‘रात के 11 बजे कहां से आ रहे हैं आप दोनों?’’ उन से इस सवाल को पूछते हुए उमाकांत ने अपने होंठों पर नकली मुसकराहट सजा ली.
‘‘दीप्ति की पक्की सहेली अंजु की आज शादी थी. वह इस के औफिस में काम करती है. यह परेशान थी कि शादी से घर अकेली कैसे लौटेगी. मैं ने इस की परेशानी देख कर साथ चलने की जिम्मेदारी ले ली. अकेले लौटने का डर मन से दूर होते ही शादी में शामिल होने की इस की खुशी बढ़ गई. मुझे अच्छा लगा,’’ आलोकजी ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया.