युवतियों को मायके में बातबात पर उलाहने दिए जाते हैं कि ससुराल जा कर ये शौक पूरे करना, यहां हम तो बरदाश्त कर रहे हैं, जब अपनी ससुराल जाओगी तब पता चलेगा, वहां सास के नखरे उठाने पड़ेंगे तब दिमाग दुरुस्त होगा. ऐसे में युवतियों के मन में ससुराल को ले कर नकारात्मक छवि बन जाती है और वे मायके से विदा होते समय ढेरों शंकाओं की गठरी लिए ससुराल में कदम रखती हैं.  किंतु जब उन की सोच के विपरीत आधुनिक विचारधारा की ससुराल और सुलझे मनमस्तिष्क की सासें उन का खुले दिल से स्वागत करती हैं तो उन की दबी इच्छाएं फिर से जाग्रत हो उठती हैं.  वे अपनी नौकरी, व्यवसाय या शौक को पूरा करने में अपनी सास का सहयोग पा भावविभोर हो उठती हैं और सासबहू का रिश्ता सासबहू के पारंपरिक रूप से आगे बढ़ मित्रवत रूप ले लेता है, जहां हर समस्या का समाधान मिलजुल कर निकाल लिया जाता है और घर के अन्य सदस्यों को भनक भी नहीं लग पाती.

सासबहुओं की बेजोड़ जोडि़यां

आइए ऐसी कुछ सासबहुओं की जोडि़यों से मिलवाते हैं, जो एकदूसरे के संगसाथ में ऐसे घुलमिल गई हैं जैसे दूध में पानी मिल जाता है.  मीनाक्षी पाठक सौफ्टवेयर इंजीनियर है और मीडिया अपार्टमैंट गाजियाबाद में रहती है. उस का इस रिश्ते के विषय में कहना है, ‘‘मुझे अपनी सास से नौकरी करने में पूर्ण सहयोग मिलता है. जहां मेरी अन्य सहेलियां लंच टाइम में अपनीअपनी सास को ले कर टीकाटिप्पणी में व्यस्त रहती हैं वहीं मैं सास के संरक्षण में रह रहे अपने बच्चों की तरफ से पूरी तरह निश्ंिचत रहती हूं कि वे स्कूल से घर आ कर लंच कर सो गए होंगे. इतना ही नहीं मेरी सास मेरे पहनावे को ले कर भी कोई टीकाटिप्पणी नहीं करती हैं और न ही किसी तरह का दिखावा. दूसरों की देखादेखी करने को कहती हैं. मैं अपनी पसंद की वेशभूषा धारण करने की आजादी का जश्न मनाती हूं.’’

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