शादी के 3 साल बाद जब पै्रगनैंसी कन्फर्म हुई तब भावना और उस के पति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन के लिए इस खबर को अपने तक रखना नामुमकिन हो गया और उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों और मित्रों को बता दी. उस के बाद सब उन सहित एक नन्हेमुन्ने के आने का इंतजार करने लगे. भावना के सासससुर ने पूरी तैयारी शुरू कर दी. भावना के पति भी प्लानिंग करने लगे कि बच्चे का कमरा कैसे होगा, कौन से रंग का पेंट करवाएं, कैसा बैड खरीदें, खिलौने कहां अच्छे मिलते हैं, आदि.
मगर प्रैगनैंसी के 9 हफ्ते ही बीते थे कि भावना को ब्लीडिंग होने लगी. जब बच्चे की हार्टबीट सुननी बंद हो गई तो दोनों बुरी तरह निराश हो गए. जब डाक्टर ने कहा कि उस का मिसकैरिज हो गया है तो भावना और उस के पति दोनों को लगा जैसे उन से किसी ने सारी खुशियां छीन ली हैं. फिर तो भावना इस दुख में डूब गई कि अवश्य उस से कोई गलती हुई होगी. तभी तो मिसकैरिज हुआ. सास ने भी सुनाया कि जब मैं ज्यादा घूमने से मना करती थी, तो कहां मानती थीं. फिर जिस ने भी सुना सब ने अपनीअपनी राय दी. किसी ने कहा कि अब जल्दबाजी मत कर देना. कुछ समय ठहर कर ही पै्रगनैंट होने की सोचना, वगैरहवगैरह.
ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जिन्हें मिसकैरिज के दर्द से गुजरना पड़ता है और यह ऐसा दर्द है, जो इमोशनली, फिजिकली और सोशली हर तरह से औरत को आहत करता है. कभीकभी तो जिंदगी भर का घाव बन जाता है. हालांकि मिसकैरिज होना आम बात मानी जा सकती है, पर उस औरत के लिए नहीं, जो अपने गर्भ में पल रहे शिशु को महसूस करने लगी थी, जिस के साथ वह भावनात्मक स्तर पर जुड़ गई थी. पिता भी इस दौरान एक आघात की स्थिति से गुजरता है.