‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.
‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है...अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.
‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है. आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’
‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’
‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है...यह तो सरासर लूट है.’’
‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’
‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’
‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.
चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए. कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.
नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था. जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.