क्या युवाओं को बाकी लोगों से ज्यादा गुस्सा आता है? इस सवाल का जवाब है- जी, हां! बहुत ज्यादा आता है. दुनिया में रोड रेज के जितने मामले सामने आते हैं, चलती फिरती जितनी मार कुटाइयां होती हैं, उनमें 90 फीसदी में से ज्यादा में युवकों की भागीदारी होती है. शायद इसीलिए कहा जाता है कि युवावस्था में गुस्सा नाक पर रखा रहता है. लेकिन यह बात सिर्फ युवकों पर लागू होती है, युवतियों पर नहीं. लड़कियां युवावस्था में भी उतनी गुस्सैल नहीं होतीं, जितने कि युवक. यह कोई संयोग नहीं है और न ही इसमें परवरिश का कोई खेल है. अगर शोध, अध्ययनों की मानें तो इसके लिए मेल बायोलाॅजी जिम्मेदार है.
इसका कारण यह है कि युवकों में एक खास किस्म का हार्मोंस होता है. जिनमें इसका स्तर कम होता है, वे युवा, उन युवाओं से कम झगड़ालू होते हैं, जिनमें यह हार्मोन ज्यादा होता है, जिसे हम टेस्टोस्टेरोन कहते हैं. टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर सबसे अधिक 19 से 30 वर्ष के युवाओं में होता है. इसी उम्र के युवा सबसे ज्यादा लड़ते-झगड़ते हैं. चूंकि महिलाओं में यह न के बराबर होता है, इसलिए इसी उम्र की महिलाएं लड़ाई झगड़े से दूर रहती हैं. इस हार्मोन की उपस्थिति से पुरुषों में आपस में प्रतिस्पर्धा का भाव जन्म लेता है, जो एक अवस्था पर पहुंचने के बाद झगड़े या दुश्मनी में बदल जाता है. पुरुषों में सहनशक्ति का कम होना भी इसी रसायन के कारण होता है.
मैलकाॅम पाॅट्स ने अपनी पुस्तक ‘सेक्स एंड वारः हाऊ बायोलाॅजी एक्सप्लेन्स वार एंड औफर्स ए पाथ आफ पीस’ में टेस्टोस्टेरोन माॅलीक्यूल को ही बड़े-बड़े जनसमुदाय के विनाश का कारण बताया है. पाॅट्स, कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में पाॅपुलेशन और फैमिली प्लानिंग के प्रोफेसर हैं. उन्होंने इस तथ्य की खोज उस समय की जब एक स्पेनी मनोविज्ञानी और यूनेस्को के एंथ्रोपोलोजिस्ट ने बयान दिया कि यह तर्क वैज्ञानिक रूप से गलत है कि इंसान को युद्ध करने के गुण पूर्वजों से मिले, जो एक समय में जानवर थे. पाॅट्स कहते हैं कि यह बात सही है कि पुरुष एक शांत जीव नहीं है. यह प्राणी बहुत कम समय में ही खतरनाक रूप धारण कर सकता है. आदिकाल में युद्धों के दौरान जो भी नरसंहार या बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बलात्कार होते थे, उसकी वजह कोई एक संस्कृति या सभ्यता नहीं थी बल्कि यह सब कुछ टेस्टोस्टेरोन माॅलीक्यूल के कारण होता है.