लेखिका- सुधा तेलंग
आजनीरा का मन सुबह से ही न जाने क्यों उदास था. कालेज के गेट से बाहर निकलते ही कार से उतरते हुए एक व्यक्ति की ओर उस का ध्यान गया तो वह धक से रह गई. कार रोक कर उस ने अधेड़ उम्र के युवक को एक लंबे अरसे बाद देख कर पहचानने की कोशिश की. वही पुराना अंदाज, चेक की शर्ट, गौगल्स से झांकती हुई आंखें कुछ बयान कर रही थी.
‘कहीं ये उस का वहम तो नहीं’ ये सोचते हुए उस ने अपने मन को तसल्ली देने की कोशिश की. नहीं यह दीप तो नहीं हो सकता वह तो कनाडा में है. वह यहां कैसे हो सकता है?
कुछ पल के लिए तो अचानक ही आंखों से निकलती अविरल धारा ने अतीत के पन्नों को खोल कर रख दिया. उस ने रिवर्स करते हुए कार को वापस कालेज की ओर मोड़ा. कार पार्किंग में खड़ी करते ही मिसेज कपूर मिलते ही बोल पड़ी, ‘‘अरे नीरा तुम तो आज आंटी को होस्पीटल ले जाने वाली थी चैकअप के लिए.’’
‘‘सौरी, डाक्टर का अपौयमैंट कल का है. मैं भूल गई थी.’’
‘‘नीरा तुम काम का टैंशन आजकल कुछ ज्यादा ही लेने लगी हो. मेरी मानो तो कुछ दिन मां को ले कर हिल स्टेशन चली जाओ.’’ मिसेज कपूर ने नीरा को प्यार से डांटने के अंदाज से कहा.
‘‘ओ के मैडम. जो हुकुम मेरी आका,’’ कहते हुए नीरा ने व्हाइट कलर की कार की ओर नजर उठाई. तब तक दीप कालेज के गेट के अंदर आ चुका था.
यह कपूर मैडम भी बातोंबातों में कभी