अमित और शुभा की अरैंज मैरिज हुई थी. शुभा पढ़ीलिखी और समझदार लड़की है . उस ने एमबीए किया हुआ है. शादी से पहले एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब भी करती थी. मगर शादी के बाद सास की इच्छा देखते हुए उस ने जॉब छोड़ दी. फिर अगले साल बेटा हो गया इसलिए जॉब दोबारा ज्वाइन करने की बात सोच ही नहीं सकी. इधर अमित केवल लॉ ग्रैजुएट था. लॉ कर के फैमिली बिजनेस में लगा हुआ था. हैल्दी शरीर और सांवले रंग के कारण दिखने में भी आकर्षक नहीं था जब कि शुभा गोरी, लंबी और खूबसूरत थी. शुभा को देख कर अमित अक्सर हीनभावना महसूस करता. यह भावना तब और बढ़ जाती जब उस के दोस्त या रिश्तेदार शुभा की खूबसूरती को ले कर उसे छेड़ते. दोस्त अक्सर कहा करते," यार तेरे जैसे लड़के को हूर कैसे मिल गई. जरा हमें भी सीक्रेट बता दे."
ऐसी बातें उसे अक्सर ही सुनने को मिलतीं. अमित जानता था कि शुभा के आगे वह हर तरह से कम है. केवल एक दौलत ही है जिस मामले में वह शुभा से अधिक था. समय के साथ शुभा के प्रति अमित का व्यवहार रूखा होता गया. अपनी हीनभावना छिपाने के लिए वह शुभा के प्रति डोमिनेटिंग एटीट्यूड अपनाने लगा. हर बात पर चीखचिल्ला कर अपना वर्चस्व साबित करता.
इस तरह की घटनाएं हम अक्सर आम जिंदगी में देखते हैं. जब हमें हमसफर तो मिल जाता है मगर सफर कठिन हो जाता है.
दरअसल जिंदगी में किसी के साथ की जरूरत हर किसी को पड़ती है. कोई ऐसा साथी जो जिंदगी के हर उतारचढ़ाव में आप का साथ दे. जो आप की खुशियों को दोगुना और गमों को आधा कर दे. ऐसा साथी कोई दोस्त भी हो सकता है और जीवन भर साथ निभाने वाला जीवनसाथी भी. कई बार आप गलत व्यक्ति को अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं और फिर जीवन भर पछताते हैं. इसलिए साथी चुनते वक्त बहुत सावधान रहने की जरूरत है. सवाल यह भी उठता है की हमें अपना जीवनसाथी अपने जैसा ढूंढना चाहिए या अपने से विपरीत? ज्यादातर मामलों में साथी अपने जैसा होना चाहिए. मगर कुछ मामलों में विपरीत साथी भी बेहतर साबित होता है.