जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है,
हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है बस मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो सारा आसमान बाकी है…
ये पक्तियां भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारी शिशिर सिंह की पत्नी गरिमा सिंह पर एकदम सटीक बैठती हैं. जरूरतमंद परिवारों की सेवा और उनके बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रही गरिमा सिंह गाजीपुर की रहने वाली हैं. महज 21 साल में शादी के गठबंधन में बंधने के बाद इन्होंने अपनी लगन, मेहनत और पति के सहयोग से स्नातक के आगे की पढ़ाई को जारी रखा. शादी के बाद स्नातकोत्तर, बीएड और पीएचडी कर परिवार के साथ समाज की सेवा के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू किया. वर्तमान में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने संग पर्यावरण व गौ सेवा के कार्यों को कर अपनी सकारात्मक सहभागिता समाज में दर्ज करा रही हैं. पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश.
लगभग 200 जरूरतमंद बच्चों को दे रहीं निशुल्क शिक्षा
बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का काम मैं 2002 से कर रही हूं. जब मैं लखनऊ आई तो मैंने ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्याधारा से जोड़ने का काम किया. सीतापुर से शुरू हुए इस सिलसिले में मैंने अपनी टीम संग गांव-गांव जाकर लोगों को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक किया. जिसके बाद गांव के गरीब परिवारों के लोग अपने बच्चों का दाखिला प्राथमिक स्कूलों में कराने लगे. अपनी टीम के संग नेवादा में एक स्कूल खोला जिसमें गांव के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है. हमारी टीम के जरिए लगभग 250 बच्चों को निशुल्क शिक्षा मिल रही है. मेरा मानना है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसको आप दुनिया बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.